जलियांवाला बाग हत्याकांड : 21 साल बाद उधम सिंह ने लंदन में जनरल डायर को मारकर लिया था का बदला
By: Priyanka Maheshwari Sat, 13 Apr 2019 07:45:55
देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। साल 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। आज जलियांगवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे हो चुके है। इस हत्याकांड के सबसे बड़े गुनहगार थे ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर और लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ डायर। 1927 में बीमारी की वजह से रेजीनॉल्ड डायर की मौत हो गई। मगर माइकल डायर ज़िंदा था और ब्रिटेन लौट चुका था। लेकिन एक नौजवान जो लगातार माइकल डायर पीछा कर रहा था। उस नौजवान ने कसम खा ली थी कि वो जलियांवाला बाग कांड के लिए जिम्मेदार पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर और गोली चलाने वाले जरनल रेगीनॉल्ड डायर से बदला लेंगे। और वो नौजवान था उधम सिंह।
जब यह हत्याकांड हुआ तब शहीद उधम सिंह की उम्र 20 साल थी। शहीद उधम सिंह ने कसम खा ली थी इस हत्याकांड के जिम्मेदार लोगों से बदला लेने की। जनरल डायर को तो उनकी बीमारी के चलते 1927 में मौत हो गई लेकिन माइकल ओ डायर अब तक जिंदा था। वो रिटायर होने के बाद हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में बस गया था। इस बात से अंजान कि उसकी मौत उसके पीछे-पीछे आ रही है। माइकल ओ डायर से बदला लेने के लिए शहीद उधम सिंह 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा सही मौके का इंतजार करने लगे और ये मौका आया 13 मार्च 1940 को, जलियांवाला बाग कांड के 21 साल बाद। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी। जहां वो भी पहुंचे और उनके साथ एक किताब भी थी। इस किताब में पन्नों को काटकर एक बंदूक रखी हुई थी। इस बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ डायर पर फायर कर दिया। माइकल ओ डायर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई।
अपनी 21 साल पुरानी कसम पूरी करने के बाद उधम सिंह ने भागने की कोई कोशिश नहीं की। उधम सिंह को अंग्रेज पुलिस गिऱफ्तार कर लिया लेकिन उस वक्त भी आज़ादी का ये मतवाला मुस्कुरा रहा था। लंदन की अदालत में भी शहीद उधम सिंह ने भारत माता का पूरा मान रखा और सर तान कर कहा, 'मैंने माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि वो इसी लायक था। वो मेरे वतन के हजारों लोगों की मौत का दोषी था। वो हमारे लोगों को कुचलना चाहता था और मैंने उसे ही कुचल दिया। पूरे 21 साल से मैं इस दिन का इंतज़ार कर रहा था। मैंने जो किया मुझे उस पर गर्व है। मुझे मौत का कोई खौफ नहीं क्योंकि मैं अपने वतन के लिए बलिदान दे रहा हूं।' 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया। जब तक हिंदुस्तान रहेगा अमर शहीद उधम सिंह की इस वीरगाथा को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।