स्वतंत्रता दिवस विशेष : जेल में लिखी रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा
By: Ankur Sat, 11 Aug 2018 5:38:24
"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है"। जिस तरह ये पंक्तियाँ किसी भी व्यक्ति में एक जोश और जज्बा उत्पन्न करती हैं, उसी तरह इन पंक्तियों को लिखने वाले रामप्रसाद बिस्मिल ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में एक नई ऊर्जा का संचार किया था। बिस्मिल वो नाम है, जिसने महज 30 साल की उम्र में देश के लिये इतना कुछ कर दिया कि आज सालों बाद भी उन्हें याद किया जाता है। वैसे तो सभी इस स्वतंत्रता सेनानी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को जानते हैं। लेकिन आज हम आपकी यादें फिर से ताजा करने जा रहे हैं।
19 वर्ष की आयु में बिस्मिल ने क्रांति के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा। अपने 11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई किताबें भी लिखीं और उन्हें प्रकाशित कर, प्राप्त रकम का प्रयोग उन्होंने हथियार खरीदने में किया। अपने भाई परमानंद की फांसी का समाचार सुनने के बाद बिस्मिल ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा की। मैनपुरी षड्यंत्र में शाहजहांपुर के 6 युवक पकड़ाए, जिनके लीडर रामप्रसाद बिस्मिल थे, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लग पाए। इसका षड्यंत्र का फैसला आने के बाद से बिस्मिल 2 साल तक भूमिगत रहे। और एक अफवाह के तरह उन्हें मृत भी मान लिया गया। इसके बाद उन्होंने एक गांव में शरण ली और अपना लेखन कार्य किया।
9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। इस डकैती में अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त, रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। काकोरी षड्यंत्र मुकदमे ने काफी लोगों का ध्यान खींचा।
सभी प्रकार से मृत्यु दंड को बदलने के लिए की गई दया प्रार्थनाओं के अस्वीकृत हो जाने के बाद बिस्मिल अपने महाप्रयाण की तैयारी करने लगे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में गोरखपुर जेल में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। फांसी के तख्ते पर झूलने के तीन दिन पहले तक वह इसे लिखते रहे।