पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आज आखिरी विदाई, निगम बोध घाट पर 2:30 बजे होगा अंतिम संस्कार

By: Pinki Sun, 21 July 2019 09:40:48

पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आज आखिरी विदाई, निगम बोध घाट पर 2:30 बजे होगा अंतिम संस्कार

15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित का 81 साल की उम्र में शनिवार दोपहर 3:55 बजे एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। शीला दीक्षित लंबे समय से हृदय से संबंधित बीमारी से जूझ रही थीं। उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर 2:30 बजे निगम बोध घाट पर किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर कों निजामुद्दीन स्थित आवास पर आज सुबह 11:30 बजे तक अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद दोपहर 12 बजे उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय लाया जाएगा, जहां उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन पर दो दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी तक श्रद्धांजलि देने उनके आवास पर पहुंचे।

शहीदों की याद में होने वाला कार्यक्रम एक दिन के लिए स्थगित

शीला दीक्षित के निधन के बाद करगिल शहीदों की याद में होने वाला कार्यक्रम एक दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है। पहले यह कार्यक्रम इंडिया गेट पर 21 जुलाई की शाम 7:30 से 8:30 बजे के बीच होना था। इसमें ट्राई सर्विस बैंड परफॉर्मेंस होना था। हालांकि, रविवार को विजय चौक से इंडिया गेट तक सुबह 6 बजे से करगिल विजय रन कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

शीला दीक्षित का राजनीतिक सफर

- पंजाब के कपूरथला में जन्मी शीला दीक्षित की शादी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से हुई। उमाशंकर दीक्षित कानपुर कांग्रेस में सचिव थे। पंजाबी से ब्राह्मण बनीं शीला दीक्षित ने ससुर के राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला।

- 1969 में जब इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाला गया तो उनका साथ देने वालों में उमाशंकर दीक्षित शामिल थे। जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तो उमाशंकर दीक्षित उनकी वफादारी का इनाम मिला और वह 1974 में देश के गृहमंत्री बनाए गए। ससुर के साथ-साथ शीला भी राजनीति में उतर गईं। एक रोज ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। 1991 में ससुर की मौत के बाद शीला ने उनकी विरासत को पूरी तरह संभाल लिया।

- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में पहली बार शीला दीक्षित कन्नौज से लड़कर संसद तक पहुंची। गांधी परिवार की करीबी होने के नाते उन्हें राजीव गांधी के सरकार में संसदीय कार्य राज्यमंत्री और पीएमओ में मंत्री बनने का मौका मिला।

- राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी ने भी उनके ऊपर पूरा भरोसा जताया। 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का चीफ बनाया गया। तब भी कांग्रेस की हालत बेहद पतली थी। कांग्रेस के टिकट पर वह पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन बीजेपी के लाल बिहारी तिवारी ने उन्हें शिकस्त दी। बाद में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने जोरदार जीत हासिल की और वह मुख्यमंत्री बन गईं।

- शीला दीक्षित करीब 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं और उसके बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था।

- 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने शीला दीक्षित को उत्तर-पूर्वी दिल्ली से अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन बीजेपी के मनोज ने तिवारी ने दीक्षित को उत्तर-पूर्वी दिल्ली से करीब 3.66 लाख वोटों से हरा दिया था।

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