अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ आज से शुरू करेगी राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई

By: Priyanka Maheshwari Thu, 10 Jan 2019 08:33:42

अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ आज से शुरू करेगी राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ आज गुरुवार (10 जनवरी) से अयोध्या राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई शुरू करेगी। खास बात यह है कि इस संवैधानिक पीठ की अगुवाई प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई करेंगे। यह पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ शामिल हैं। पीठ के गठन में जजों की वरिष्ठता का खयाल रखा गया है। नवगठित पांच सदस्यीय पीठ में न केवल मौजूदा प्रधान न्यायाधीश होंगे बल्कि इसमें चार अन्य न्यायाधीश भी होंगे जो भविष्य में सीजेआई बन सकते हैं। न्यायमूर्ति गोगोई के उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बोबडे होंगे। उनके बाद न्यायमूर्ति रमण, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की बारी आएगी।


अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गयी हैं। उच्च न्यायालय ने इस फैसले में विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर- बराबर बांटने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत में यह मामला पिछले 10 साल से लंबित है। पिछली सुनवाई गत 4 जनवरी को हुई थी। इस सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने मामले को उचित पीठ के समक्ष 10 जनवरी को सुनवाई पर लगाने का फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गत 29 अक्टूबर को अयोध्या केस की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी 2019 से करने का आदेश दिया था। इस फैसले पर राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु संत समाज ने नाराजगी जाहिर की और सरकार पर दबाव बनाया। साधु संत समाज ने अध्यादेश के जरिए मंदिर का निर्माण करने की बात कही। इस दौरान अखिल भारत हिंदू महासभा ने अयोध्या मामले की त्वरित गति से सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई गई लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह इस बारे में फैसला पहले ही दे चुका है।

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने गत 27 सितंबर को अपने 2-1 फैसले में 1994 के अपने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से 1994 के अपने फैसेल पर दोबारा विचार करने की मांग की गई थी। 1994 के अपने इस्माइल फारूकी फैसले में कोर्ट ने कहा था कि नमाज पढ़ना इस्लाम का आतंरिक हिस्सा नहीं है। यह मामला अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। मुस्लिम पक्षकारों ने 1994 के फैसले को पुनर्विचार के लिए उसे पांच जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया था। 1994 का इस्माइल फारूकी का मामला अयोध्या में भूमि अधिग्रहण से संबंधित था।

बता दें कि कई हिंदू संगठनों ने राम मंदिर का निर्माण अध्यादेश के जरिए करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले एक साक्षात्कार में स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार अयोध्या मामले में कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद सरकार के रूप में उनकी जो भी जिम्मेदारी बनेगी उसे पूरा करने के लिए सारे प्रयास किए जाएंगे।

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