फिल्म समीक्षा: खराब स्क्रीनप्ले का शिकार हुई ‘रॉ: रोमियो अकबर वॉल्टर’

By: Geeta Fri, 05 Apr 2019 3:30:05

फिल्म समीक्षा: खराब स्क्रीनप्ले का शिकार हुई ‘रॉ: रोमियो अकबर वॉल्टर’

निर्माता — वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
लेखक निर्देशक — रॉबी ग्रेवाल
स्टारकास्ट — जैकी श्रॉफ, जॉन अब्राहम, सिकन्दर खेर, मौनी रॉय
रेटिंग — 2 स्टार
अवधि — 2 घंटे 19 मिनट

गत वर्ष बॉक्स ऑफिस पर परमाणु और सत्यमेव जयते सरीखी फिल्में देने वाले जॉन अब्राहम से इस बात की उम्मीद कतई नहीं थी कि वे दर्शकों को एक ऐसी फिल्म देंगे जिसका स्क्रीनप्ले इतना खराब होगा। एक जासूसी फिल्म बनाते वक्त इस बात का ध्यान रखना होता है कि फिल्म का नायक जो जासूस है वह दर्शकों में अपनी गम्भीर छवि को पेश करे। यदि आप उसके किरदार के साथ खिलवाड़ करते हैं तो वह जासूस कम मसखरा ज्यादा लगेगा और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है जहाँ जॉन अब्राहम जासूस कम और मसखरे ज्यादा नजर आते हैं। रॉबी ग्रेवाल ने उनके किरदार को सही दिशा नहीं दी है। उन्होंने जॉन अब्राहम के किरदार के लिए कई ऐसे दृश्यों की रचना की है जो उनकी बेवकूफी को दर्शाते हैं। जैसे दुश्मनों के घर में नायिका से बातचीत करना, उसके लिए गीत गाना, बीच सडक़ पर टैक्सी में बैठ कर रोमांस करना आदि एक रॉ एजेंट मूर्खतापूर्ण काम है। इससे उसकी विश्वसनीयता कम होती है। तमाम बड़े सितारे, ग्रैंड प्रोडक्शन वैल्यू और बेहतरीन लोकेशंस बुरे स्क्रीनप्ले का शिकार हो गए।

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रॉ यानी रोमियो अकबर वॉल्टर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है। मध्यान्तर से पहले फिल्म बोझिल है जो दर्शकों में वो उत्सुकता नहीं जगा पाते जिसकी इस विषय पर बनी फिल्मों को जरूरत होती है। मध्यान्तर के बाद फिल्म कुछ रफ्तार पकड़ती है लेकिन तब तक निर्देशक से देर हो चुकी थी जिसके चलते दर्शक उससे जुड़ नहीं पाता है। यदि रॉबी ग्रेवाल इसका स्क्रीनप्ले सही रखते तो यह एक अच्छी जासूसी फिल्म हो सकती जो निश्चित रूप से दर्शकों को अपने साथ जोडऩे में कामयाब होती है।

रोमियो एक बैंक में काम करता है और रॉ उसे एक एजेंट के रूप में चुनकर अकबर मल्लिक बनाकर पाकिस्तान भेज देता है। वो वहां से कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजता है। इस बीच उसे किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है और रोमियो से अकबर मल्लिक बना यह रॉ एजेंट वाल्टर कैसे बनता है, इसी ताने-बाने पर बुनी गई है फिल्म रॉ। अभिनय की बात करें तो जॉन अब्राहम ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। हालांंकि कहीं-कहीं वे ओवर एक्टिंग का शिकार हो गए हैं। सिकन्दर खेर का अभिनय शानदार है। उन्होंने इस बात का संकेत दिया है कि यदि उन्हें सही किरदार और निर्देशक मिले तो वे स्वयं को बेहतर अभिनेता साबित कर सकते हैं। फिल्म में उनके हिस्से में आए दृश्यों में कुछ ऐसे हैं जिनमें उन्होंने अपनी छाप छोडऩे में सफलता पाई है। रॉ प्रमुख की भूमिका में जैकी श्रॉफ प्रभावित करते हैं। मौनी रॉय इस फिल्म में नहीं होती तब भी काम चल सकता था। इनके होने से रॉबी को फिल्म में प्रेस प्रसंग और गीतों के लिए जगह बनानी पड़ी जिससे फिल्म की गति व कथानक में रुकावट आती है। फिल्म को जिन स्थानों पर फिल्माया गया है वह फिल्म के कथानक को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं।

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