आलोक वर्मा ने तोड़ी चुप्पी: कहा - मैंने सीबीआई की साख बनाए रखने की कोशिश की, जबकि इसे नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं
By: Priyanka Maheshwari Fri, 11 Jan 2019 08:26:37
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मात्र दो दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में गुरुवार को हाई पावर सेलेक्शन कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटा दिया। सीबीआई चीफ पद से हटाए गये आलोक वर्मा ने कहा कि झूठे, अप्रमाणित और बेहद हल्के आरोपों को आधार बनाकर ट्रांसफर किया गया है। उन्होंने कहा ये आरोप उस एक शख्स ने लगाए हैं, जो उनसे द्वेष रखता है। इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए आलोक वर्मा ने गुरुवार देर रात पीटीआई को दिए एक बयान में कहा कि सीबीआई उच्च सार्वजनिक स्थानों में भ्रष्टाचार से निपटने वाली एक प्रमुख जांच एजेंसी है, एक ऐसी संस्था है जिसकी स्वतंत्रता को संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि इसे बिना किसी बाहरी प्रभावों यानी दखलअंदाजी के कार्य करना चाहिए। मैंने संस्था की साख बनाए रखने की कोशिश की है, जबकि इसे नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। पैनल ने पाया कि सीवीसी ने आलोक वर्मा पर गंभीर टिप्पणियां की हैं। पैनल को लगा कि आलोक वर्मा जिस तरह के संवेदनशील संस्था के प्रमुख थे, उन्होंने वैसा आचरण नहीं किया। पैनल के मुताबिक सीवीसी को लगा है कि मोइन क़ुरैशी मामले में आलोक वर्मा की भूमिका संदेहास्पद है। IRCTC केस में सीवीसी को ये लगा है कि जानबूझकर वर्मा ने एक नाम हटाया है। वहीं सीवीसी को कई दूसरे मामलों में भी शर्मा के खिलाफ सबूत मिले हैं। फ़िलहाल उन्हें डीजी फायर सर्विसेज़, सिविल डिफेंस और होमगार्ड का बनाया गया है।
दरअसल, केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा उसकी जांच रिपोर्ट में भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोपों के कारण आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख के पद से हटना पड़ा। जांच एजेंसी के 50 साल से अधिक के इतिहास में यह अपनी तरीके का पहला मामला है। सीवीसी की जांच रिपोर्ट में खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ द्वारा की गई ‘टेलीफोन निगरानी’ का हवाला दिया गया।
अधिकारियों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत उच्चशक्ति प्राप्त समिति ने सीवीसी रिपोर्ट पर विचार किया। इस रिपोर्ट में वर्मा पर आठ आरोप लगाए गए। वर्मा को उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बहाल किया था। अधिकारियों ने कहा कि वर्मा को हटाने का समिति का फैसला 2:1 के बहुमत से किया गया। कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसका विरोध किया जबकि न्यायमूर्ति ए के सीकरी सरकार के साथ खड़े हुए। वहीं पैनल के तीसरे सदस्य के तौर पर मौजूद लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा को हटाने के विरोध में थे। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उन्होंने मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की जांच रिपोर्ट सहित कई दस्तावेज मांगे हैं। उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘मैंने मामले में सीवीसी की जांच रिपोर्ट सहित कुछ दस्तावेज देने के लिए कहा है।’ उन्होंने कहा था कि आलोक वर्मा को भी कमेटी के सामने हाजिर होकर अपना पक्ष रखने का मौका देना चाहिए।' यही नहीं, कमेटी के सदस्य खड़गे ने कहा कि वर्मा को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए और उनका कार्यकाल 77 दिन के लिए बढ़ाया जाना चाहिए। इस अवधि के लिए वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया गया था। यह दूसरा मौका है जब खड़गे ने वर्मा को पद से हटाने पर आपत्ति जताई।