बुराड़ी कांड: 11 मौतों की कहानी की शुरुआत 11 साल पहले 2007 में हुई थी, 11 बातें

By: Priyanka Maheshwari Thu, 05 July 2018 1:54:04

बुराड़ी कांड: 11 मौतों की कहानी की शुरुआत 11 साल पहले 2007 में हुई थी, 11 बातें

बुराड़ी हत्याकांड की जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे नये खुलासे होते जा रहे है। 11 लोगों की मौत के रहस्य की जांच करते हुए पुलिस के हाथ ललित के घर से जो दो रजिस्टर व कुछ नोट्स मिले हैं। माना जा रहा है कि घर से बरामद रजिस्टरों में जिस मोक्ष की बात की जा रही है। दरअसल 11 मौतों की कहानी की शुरुआत 11 साल पहले 2007 में हुई थी जब परिवार के मुखिया भोपाल सिंह की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही परिवार के सबसे छोटे बेटे ललित के अंदर उसके पिता की 'आत्मा' आने लगी। मिले रजिस्टर से पता चला है कि न सिर्फ ललित के पिता उसके सपने में आते थे बल्कि उनकी आत्मा साक्षात उस पर आ जाता थी। ऐसा होने से पूर्व वह घर के सभी लोगों को एक जगह इकठ्ठा कर लेता था। इसके बाद वह पिता का फैसला सभी को सुनाता था। सभी ललित को अलौकिक और स्पेशल पावर से लैस मानते थे। अपने सभी छोटे-बड़े काम ललित पिता की आत्मा के आदेश पर करता। यहां उसने अपनी दुकानों को बड़ा कराने और घर को दुबारा से बनाने का काम भी पिता की आत्मा के कहने पर किया। पिछले करीब एक साल से ललित पिता के आदेश पर ही अपने घर में निर्माण कार्य करवा रहा था। ठेकेदार कुंवर पाल ने बताया कि रुक-रुककर वह मकान में काम करवा रहे थे। फिलहाल ललित को कुंवरपाल के एक लाख रुपये भी देना थे। वहीं घर से मिले रजिस्टर की छानबीन से पता चलता है, ललित व उसका परिवार पिछले काफी दिनों से मोक्ष प्राप्ति की तैयारी कर रहा था। इसके लिए सही समय का इंतजार किया जा रहा था। सूत्रों की मानें तो इसके लिए दो बार प्रेक्टिस भी की गई थी। ललित व बाकी परिवार का मानना था कि क्रिया को करने से उनकी जान नहीं जाएगी। रजिस्टर से यह भी पता चला है कि रविवार सुबह 4.38 बजे भद्रा काल लग रहा था। भद्रा काल अशुभ होता है, लिहाजा मोक्ष की प्राप्ति भद्रा काल लगने से पहले ही होगी। इसी लिए परिवार ने रात 12.00 से 1.00 बजे के बीच खुद को फंदे पर लटका लिया कहीं न कहीं उन्हें खुद के बचने का यकीन था। पुलिस सूत्रों ने बताया है कि उनको घर से जो 11 रजिस्‍टर मिले थे उनको पढ़ने से पाया कि परिवार का खुदकुशी करने का कोई इरादा नहीं था।


- परिवार के 11 लोगों का खुदकुशी का कोई इरादा नहीं था और वह ये सब तपस्या अपने अच्छे भविष्य के लिए कर रहे थे, लेकिन एक हादसे के तौर पर उनकी मौत हो गई। इसमें सिर्फ तीन लोगों भूपी, ललित और टीना के हाथ खुले हुए थे।

- यह परिवार बरगद की तपस्या करके अपने परिवार की खुशहाली के लिए यह पूजा कर रहा था जो 7 दिन से चल रही थी। ये पूजा एक आत्मा को खुश करने के चक्कर में 11 लोगों की जान चली गई।

- पिछले 11 साल में ललित ने पिता की आत्मा आने के बाद जो फैसले लिए उसकी वजह से परिवार की काफी तरक्की हुई। एक दुकान से तीन दुकान हो गईं। घर भी अब दोबारा बनाया जा रहा था।

- प्रियंका मांगलिक थी जिसकी वजह से उसकी शादी नहीं हो रही थी। पिता के कहने पर जब एक ख़ास पूजा करने के बाद 17 जून को उसकी शादी एक अच्छे लड़के से तय होने के बाद सगाई भी हो गई तो परिवार काफी खुश था।

- ललित के अंदर उसके पिता आए और उन्होंने 24 जून से 7 दिन तक चलने वाली बड़ पूजा यानी बरगद की तपस्या करने को कहा। ललित ने परिवार को बताया कि हमें 24 जून से 7 दिन तक बरगद की तपस्या करनी है। इसके बाद हमारे दिन और अच्छे और खुशहाल हो जाएंगे।

- परिवार 24 जून से रोज़ रात में पूजा करता था। इस पूजा से पहले ही 30 तारीख को रात 12 से एक बजे के बीच में सबको बरगद के पेड़ की शाखाओं की तरह खड़ा होना था। किसको कहां खड़ा होना है, क्या करना है, यह सब रजिस्टर में पहले से ही लिखा था।

- पुलिस ने घर के बाहर लगे सीसीटीवी में देखा- 30 जून को रात 10:00 बजे नीतू और उसकी मां 6 काले रंग के स्टूल लेकर ऊपर गईं। रात 10:40 पर डिलीवरी ब्वाय खाना लेकर आया और वह उसने प्रियंका को दिया।

- रात 10.57 बजे भूपी कुत्ते को घुमाने के लिए बाहर आया। अगले दिन सुबह 5:56 बजे ट्रक दूध लेकर आया। आम तौर पर दुकान सुबह 6 बजे खुल जाती है, लेकिन जब दुकान नहीं खुली तो ट्रक वाले ने कई बार फोन मिलाया लेकिन किसी ने नहीं उठाया। ट्रक 6:03 बजे चला गया। सुबह 7:14 बजे नौकरों ने पड़ोस के सरदार जी से कहा तो वे ऊपर गए। वे 35 सेकेंड में नीचे आ गए और शोर मचा दिया।

- 30 जून को आख़िरी बार यह डायरी लिखी गई। डायरी के ब्योरे डरावने ढंग से मौत के ब्योरों से मिलते हैं। ये आख़िरी पन्ना बताता है।

- घर से 11 रजिस्टर मिले हैं जिनमें मौत की पूरी स्क्रिप्ट पहले से ही लिखी हुई है। पुलिस ने बताया कि पिछले 11 साल से ललित के पिता उसके सपने में आ रहे थे। वह 2007 से, यानि 11 साल से अपने पिता की आवाज़ निकाल रहा था। परिवार के 11 सदस्यों के अलावा किसी को यह बात पता नहीं थी।

- इस परिवार का सरनेम भाटिया नहीं बल्कि चुंडावत है। दरअसल प्रतिभा की शादी भाटी से हुई थी, जिनकी मौत हो गई थी। प्रतिभा बच्चों को पढ़ाती थी तो बच्चे उन्हें भाटिया मैडम बोलते थे।

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