Ganesh Chaturthi 2018 : उच्छिष्ट गणपति मंदिर - जहाँ पूजन मात्र से ऐश्वर्य के साथ होती है मोक्ष की प्राप्ति
By: Ankur Fri, 21 Sept 2018 2:04:53
गणेशोत्सव का पर्व समाप्त होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं और सभी चाहते है कि इन बचे हुए दिनों में गणपति बप्पा के विशेष मंदिरों का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया जाए। इसलिए आज हम गणपति बप्पा के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ पूजन मात्र से ही ऐश्वर्य के साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।हम बात कर रहे हैं उच्छिष्ट गणपति मंदिर के बारे में। गणपति के इस रूप को सबसे दुर्लभ और अद्भुत माना जाता हैं। तो आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
औंकारेश्वर के समीप सनावद के ग्राम मोरघड़ी में स्थित है श्री शनि-गजानन शक्तिपीठ। इसी शक्तिपीठ में दर्शन होते हैं दुर्लभ और अद्भुत भगवान उच्छिष्ट महागणपति के, जिनकी गोद में भगवती नील सरस्वती विराजित हैं। उच्छिष्ट महागणपति भगवान गणेश का ही एक स्वरूप हैं, जिनके दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
उच्छिष्ट गणपति का स्वरूप बहुत ही दुर्लभ है। भारत में उच्छिष्ट गणपति का एकमात्र मंदिर तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के समीप काफी जीर्णशीर्ण अवस्था में है, जो कि 1300-1400 साल पुराना है। इसके अलावा चीन में इस तरह का मंदिर होने का उल्लेख मिलता है। वे बताते हैं कि अथर्ववेद में उच्छिष्ट गणपति स्वरूप का उल्लेख मिलता है। मंत्र महार्णव और मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में भी इनका उल्लेख है। सतयुग में गणेशजी के इस स्वरूप की उपासना महर्षि भृगु एवं महर्षि गर्ग ने की थी, जबकि त्रेता युग में वानर राज सुग्रीव और रावण के छोटे भाई विभीषण ने उच्छिष्ट गणपति की आराधना की थी। द्वापर में ऋषि पाराशर एवं कलयुग में आदि शंकराचार्य ने गणेश के इस स्वरूप की उपासना की थी। इसके साथ ही श्री विद्या के सभी उपासक उच्छिष्ट गणपति की निरंतर आराधना करते आ रहे हैं।
यह मंदिर माह में एक बार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही खुलता है। इसी दिन इनके दर्शन किए जा सकते हैं। चतुर्थी को शाम के समय महाआरती के बाद गणेशजी की छोटी प्रतिमा को बाहर कीर्ति स्तंभ तक लाया जाता है और सभी श्रद्धालु अपने पैरों को आगे की तरफ रखकर बैठते हैं। बारी-बारी से सभी को भगवान का आशीर्वाद मिलता है। यहां निर्मित कीर्ति स्तंभ के बारे में मान्यता है कि जो उसे नीचे से ऊपर की ओर निहारता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है।
गणेश जी का यह स्वरूप जल्दी फल देने वाला है। गणेशजी के ही अन्य स्वरूपों की तुलना में उच्छिष्ट गणपति दस गुना जल्दी फल देते हैं। जो लाभ सवा लाख जप से मिलता है, वही फल उच्छिष्ट गणपति के साढ़े बारह हजार जप से मिल जाता है। गणपति के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से बुद्धि, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, धन-समृद्धि, पारिवारिक सुख-शांति, दीर्घायु, शीघ्र विवाह एवं अनिष्ट ग्रहों का निवारण होता है। इनकी साधना से अन्न का भंडार बढ़ता है साथ ही व्यवसाय में भी वृद्धि होती है। उच्छिष्ट गणपति के दर्शन और पूजन का शास्त्रीय विधान है।