Janmashtami Special : कृष्ण के बालरूप की पूजा होती है गुरुवयूर मंदिर में, जानें इसके बारे में

By: Priyanka Maheshwari Thu, 30 Aug 2018 08:35:34

Janmashtami Special : कृष्ण के बालरूप की पूजा होती है गुरुवयूर मंदिर में, जानें इसके बारे में

जन्माष्टमी Janmashtami Special का दिन आ चूका हैं और इसकी रौनक चारों तरफ देखी जा सकती हैं। इस दिन सभी मंदिरों में कृष्ण की पूजा की जाती हैं और अभिषेक भी किया जाता हैं। लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं वहाँ भगवान कृष्ण के बालरूप की पूजा की जाती हैं और जन्माष्टमी में श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। हम बात कर रहे हैं गुरुवयूर मंदिर के बारे में जो भारत के केरल राज्य में स्थित है। तो आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

केरल राज्य के थ्रिसुर जनपद में गुरुवायुर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। ऐसा कहा जाता है कि गुरुवायुर मंदिर कई शताब्दियों पुराना है।इस मंदिर के देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं जो बालगोपालन यानि कृष्ण भगवान का बालरूप हैं। हालांकि इस मंदिर में गैर-हिन्दुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है, फिर भी कई धर्मों अनुयायी भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसका रिश्ता केवल धर्म कर्म और पूजा पाठ से ही नहीं बल्कि कला और साहित्य से भी है। ये मंदिर प्रसिद्घ शास्त्रीय नृत्य कला कथकली के विकास में सहायक रही विधा कृष्णनट्टम कली, जोकि नाट्य-नृत्य कला का एक रूप है उसका प्रमुख केंद्र है। गुरुयावूर मंदिर प्रशासन जो गुरुयावूर देवास्वोम कहलाता है एक कृष्णट्टम संस्थान का संचालन करता है।

इसके साथ ही, गुरुयावूर मंदिर का दो प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों से भी संबंध है नारायणीयम के लेखक मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी और ज्नानाप्पना के लेखक पून्थानम, दोनों ही गुरुवायुरप्पन के परम भक्त थे। नारायणीयम संस्कृत में लिखा ग्रंथ है जिसमें महाविष्णु के दस अवतार पर जानकारी दी गर्इ है, और ज्नानाप्पना मलयालम भाषा में लिखी पुस्तक जीवन के विभिन्न सत्यों की विवेचना करती है और क्या करना चाहिए व क्या नहीं करना चाहिए, इसके सम्बन्ध में उपदेश देती है।

गुरुवायुर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय कर्नाटकीय संगीत का एक प्रमुख स्थल है।, यहां एकादसी दिवस के दौरान जोकि सुविख्यात गायक और गुरुवायुरप्पन के परम भक्त, चेम्बाई वैद्यनाथ भगावतार की स्मृति में मनाया जाता है, उल्सवम नाम का एक वार्षिक समारोह भी करता है। ये उत्सव कुम्भ के मलयाली महीने (फरवरी-मार्च) में पड़ता है। इसके दौरान यहां पर कथकली, कूडियट्टम, पंचवाद्यम, थायाम्बका और पंचारिमेलम आदि कर्इ शास्त्रीय नृत्यों का आयोजन होता है।

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