श्रीदेवी : 50 साल, 300 फिल्में, 5 फिल्मफेयर और ‘पद्मश्री’
By: Sandeep Gupta Mon, 26 Feb 2018 10:27:58
आज सुबह अचानक से इंटरनेट के जरिये श्रीदेवी के असामयिक निधन का समाचार मिला। दु:ख और अफसोस हुआ। जेहन में उनकी फिल्मों के दृश्य घूमने लगे। ‘सोहलवां सावन’ की वो सांवली, मोटी नायिका कब हिन्दी सिनेमा की ‘चाँदनी’ बनकर सिरमौर बनी इसका पता ही नहीं चला। 1983 से ‘हिम्मतवाला’ के जरिए शुरू हुआ सफलतम करियर 1997 ‘जुदाई’ तक जारी रहा। 15 साल लम्बे सफल करियर में उन्होंने बहुत सी फिल्मों में काम किया। अपने सफलतम करियर में उन्हें पाँच बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2013 में उन्हें भारत सरकार द्वारा फिल्मों में दिए गए योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
जितेन्द्र के साथ ‘हिम्मतवाला’ से शुरूआत करने वाली श्रीदेवी ने 1983-1986 तीन साल के अन्तराल में उनके साथ 16 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 13 फिल्में सुपरहिट रही और 3 असफल रही। जितेन्द्र के साथ सर्वाधिक फिल्मों में काम करने वाली श्रीदेवी ने उनके समय के सभी नामचीन नायकों के साथ काम किया। इनमें अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती, राकेश रोशन, रजनीकांत, सनी देओल, अनिल कपूर, ऋषि कपूर, फिरोज खान, संजय दत्त, गोविन्दा, नागार्जुन, जैकी श्रॉफ, शत्रुघ्न सिन्हा, कमल हासन और राजेश खन्ना शामिल थे।
फिल्म निर्देशक शेखर कपूर ने एक बार अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि, ‘जब मैं श्रीदेवी के साथ ‘मिस्टर इंडिया’ का गीत हवा हवाई शूट कर रहा था तो मुझे समझ नहीं आता था कि मैं श्रीदेवी का क्लोज अप लूँ या फिर दूर से शूट करूँ। उनके चेहरे के भाव, उनकी आँखें इतनी मोहक थीं कि लगता था कि इन्हीं को दिखाता रहूँ जो क्लोज अप में ही मुमकिन था, लेकिन इसमें उनका डांस छूट जाता था, उनका डांस ऐसा गज़़ब था कि लगता था दूर से कैमरे में हर एक अदा कैद कर लूँ।’
श्रीदेवी के करियर को संवारने में जहाँ मिस्टर इंडिया, नगीना, चांदनी, लम्हे का हाथ रहा वहीं दो और ऐसी फिल्में रहीं जिन्होंने उनकी अभिनय क्षमता पर उभरने वाले समस्त सवालों का जवाब दिया। यह फिल्में थी सदमा और चालबाज। ‘सदमा’ का निर्माण रोमू एन सिप्पी और राज एन सिप्पी ने किया था। अस्सी के दशक में राज एन सिप्पी सफल निर्देशकों में शामिल होते थे लेकिन उन्होंने इस फिल्म का निर्देशक बालू महेन्द्रा से करवाया जिन्होंने इस फिल्म के मूल तमिल वर्जन को निर्देशित किया था। वहीं दूसरी ओर ‘चालबाज’ का निर्देशन पंकज पाराशर ने किया था। यह रमेश सिप्पी की ‘सीता और गीता’ का रीमेक थी। इस फिल्म में श्रीदेवी ने दोहरी भूमिका (अंजू और मंजू) की निभायी। इसके साथ ही उन्होंने यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी ‘लम्हे’ और मुकुल एस.आनन्द के निर्देशन में बनी ‘खुदा गवाह’ में दोहरी भूमिका निभाई थी।
‘सदमा’ की वो 20 साल की लडक़ी जो पुरानी जि़ंदगी भूल चुकी है और वो सात साल की मासूमियत लिए एक छोटी बच्ची की तरह कमल हसन के साथ उसके घर पर रहने लगती है। याद आता है रेलवे स्टेशन का वो दृश्य जहाँ याददाश्त वापस आने के बाद ट्रेन में बैठी श्रीदेवी कमल हसन को भिखारी समझ बेरुखी से आगे बढ़ जाती है और कमल हसन बच्चों सी हरकतें करते हुए श्रीदेवी को पुराने दिन याद दिलाने की कोशिश और करतब करते हैं। सदमा का यह दृश्य हिन्दी फिल्मों के बेहतरीन दृश्यों में से एक है।
गत वर्ष प्रदर्शित हुई ‘मॉम’ उनकी अन्तिम प्रदर्शित फिल्म रही, जिसे उनके पति बोनी कपूर ने निर्मित किया था। यह उनके करियर की 300वीं फिल्म थी। यह माँ के इंतकाम की फिल्म थी, जिसमें एक माँ अपनी बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार का बदला लेती है। फिल्म का एक संवाद ‘अगर गलत और बहुत गलत में से चुनना हो तो आप किसे चुनेंगे’, नश्तर की तरह दर्शकों के दिलों में चुभता है।
जुदाई 1997 के बाद उन्होंने फिल्मों से 14 साल का लम्बा संन्यास लिया। इस दौरान उन्होंने अपनी पुत्रियों को बड़ा किया और जब वे समझदार हो गई तब उन्होंने अपनी वापसी की। वापसी भी कोई ऐसी वैसी नहीं थी। लेखिका निर्देशिका गौरी शिंदे ने उन्हें ‘इंगलिश विंगलिश’ के जरिए फिर से दर्शकों से परिचित कराया। जिस अंदाज में उनकी वापसी हुई वैसी वापसी अन्य किसी अभिनेत्री को नहीं मिली। इस फिल्म को देखते वक्त ऐसा लगा ही नहीं कि वो कभी पर्दे से गई थीं। इस फिल्म में उनके अभिनय की बानगी ताजा हवा के झोंके की तरह थी। याद आता है उनका बोला गया संवाद ‘मर्द खाना बनाए तो कला है, औरत बनाए तो उसका फर्ज है’। फिल्म में जब श्रीदेवी ये संवाद बोलती हैं तो वे अपने पात्र शशि के रूप में एक घरेलू महिला की दबी इच्छाओं और उसकी अनदेखी को बयां कर जाती हैं।
‘मॉम’ को उनके पति ने फिल्मों में 50 वर्ष पूरे होने के दिन प्रदर्शित किया था। 50 साल में 300 फिल्मों में काम करने वाली श्रीदेवी ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि वे अपनी पुत्री जाह्नवी कपूर की पहली फिल्म ‘धडक़’ नहीं देख पाएंगी। धडक़ 20 जुलाई 2018 को प्रदर्शित हो रही है।
चांदनी की सी रोशनी बिखेरनी वाली, बड़ी बड़ी आँखों वाली श्रीदेवी हिन्दी अभिनेत्रियों से एकदम जुदा थी। उनके अभिनय से सजी फिल्में हमेशा दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान छोड जाती थी। उनके न होने का अफसोस बॉलीवुड को हमेशा रहेगा। नई पीढ़ी की नायिकाओं की तुलना अब उनसे हमेशा की जाएगी। हो सकता है आने वाले समय में कोई ऐसी नायिका आए जो श्रीदेवी के रिक्त स्थान को भरने में कामयाब हो जाए। हालांकि इस बात की उम्मीद बहुत कम नजर आती है। हर अभिनेता-अभिनेत्री का अपना एक अंदाज होता है, श्रीदेवी का अपना एक अंदाज था, जिसे कोई नहीं मिटा सकता।