नागपंचमी के अवसर पर नाग वंश के इतिहास के बारे कुछ खास बातें

By: Ankur Wed, 15 Aug 2018 12:50:57

नागपंचमी के अवसर पर नाग वंश के इतिहास के बारे कुछ खास बातें

भारत देश में सावन मास की शुक्ल पंचमी को पूरे देश में नागपंचमी का त्योहार बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। इस दिन की गई नागदेवता की पूजा का विशेष महत्व माना जाता हैं। इस पूजा से भगवान शिव को भी प्रसन्नता होती है और वे अपना आशीर्वाद देते हैं। हमारे ग्रंथों में नागों को विशेष स्थान दिया गया है और उनके बारे में वर्णन किया गया हैं। अज हम आपको इस नागपंचमी के अवसर पर नाग वंश के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं नागवंश और उनके पौराणिक महत्व के बारे में।

* शेषनाग : शेषनाग का दूसरा नाम अनन्त भी है। शेषनाग ने अपनी दूसरी माता विनता के साथ हुए छल के कारण गंधमादन पर्वत पर तपस्या की थी। इनकी तपस्या कारण ब्रह्राजी ने उन्हें वरदान दिया था। तभी से शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पर संभाले हुए है। धर्म ग्रंथो में लक्ष्मण और बलराम को शेषनाग के ही अवतार माना गया है। शेषनाग भगवान विष्णु के सेवक के रूप में क्षीर सागर में रहते हैं।

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* वासुकि नाग : नाग वासुकि को समस्त नागों का राजा माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। त्रिपुरदाह यानि युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था। उस समय वासुकि शिव जी के धनुष की डोर बने थे। नाग वासुकि को जब पता चला कि नागकुल का नाश होने वाला है और उसकी रक्षा इसके भगिनीपुत्र द्वारा ही होगी तब इसने अपनी बहन जरत्कारु को ब्याह दी। इस तरह से उन्होंने सापों की रक्षा की, नहीं तो समस्त नाग उसी समय नष्ट हो गये होते।

* तक्षक नाग : तक्षक नाग के बारे में महाभारत में एक कथा है। उसके अनुसार श्रृंगी ऋषि के श्राप के कारण तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को डसा था जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी। तक्षक नाग से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। तब आस्तीक मुनि ने तक्षक के प्राणों की रक्षा की थी। तक्षक ही भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है।

* कर्कोटक नाग : कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार,अपनी माता के शाप से बचने के लिए सारे नाग अलग-अलग जगहों में यज्ञ करने चले गए। कर्कोटक नाग ने ब्रह्राजी के कहने पर महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित शिवलिंग की पूजा की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा।

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