कोई भी सुरक्षा मनुष्य को मौत से नहीं बचा सकती : मुनिश्री तरुण सागरजी
By: Ankur Sat, 01 Sept 2018 09:01:59
मुनिश्री तरुण सागरजी की बिगड़ी तबियत के कारण उनके अनुयायिओं को उनकी चिंता सताने लगी हैं। इसी के साथ ही मुनिश्री तरुण सागरजी ने अन्न और जल का त्याग भी कर दिया हैं। इनको अपनी बात खुलकर रखने के लिए जाना जाता हैं। इनके प्रसीध कडवे वचन जीवन को जीने की दिशा दिखाते हैं। आज हम आपको इनके कुछ ऐसे ही कडवे वचनों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
* कोई भी सुरक्षा मनुष्य को मौत से नहीं बचा सकती। मौत के आगे सुरक्षा भी फेल हो जाती है। हम अपने जीवन की रक्षा के लिए भले ही कितने सुरक्षा कर्मचारी तैनात कर लें लेकिन वे मौत से नहीं बचा सकते। बाहरी सुरक्षाकर्मी कुछ नहीं कर सकते।
* हमें वास्तव में यदि मौत से बचना है, तो केवल आपके द्वारा किए गए पुण्य कार्य ही उसे आने से रोक सकते हैं। हमेशा अच्छे कार्यों का श्रेय बड़ों को दें तथा त्रुटियों के लिए स्वयं को जिम्मेदार ठहराएं।
* जिस प्रकार पशु को घास तथा मनुष्य को आहार के रूप में अन्न की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भगवान को भावना की जरूरत होती है। प्रार्थना में उपयोग किए जा रहे शब्द महत्वपूर्ण नहीं बल्कि भक्त के भाव महत्वपूर्ण होते हैं।
* लोग दुनिया का कल्याण तो चाहते हैं, लेकिन पहले स्वयं अपना। शराब से ज्यादा नशा धन का होता है। शराब का नशा तो दो-चार घंटे बाद ही उतर जाता है, लेकिन धन का नशा तो जिंदगी बर्बाद करने के बाद ही उतरता है।
* धन का अहंकार रखने वाले हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि पैसा कुछ भी हो सकता है, बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन सब कुछ नहीं हो सकता। हर आदमी को धन की अहमियत समझना बहुत जरूरी है।
* धनाढ्य होने के बाद भी यदि लालच और पैसों का मोह है, तो उससे बड़ा गरीब और कोई नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति 'लाभ' की कामना करता है, लेकिन उसका विपरीत शब्द अर्थात 'भला' करने से दूर भागता है।
* वास्तव में 'होटल' का अर्थ 'वहां से टल' जाना ही समझना चाहिए। शाकाहार का पालन करने वालों को चाहिए कि कभी भी उस होटल में भोजन मत करो जहां मांसाहारी भोजन भी बनता हो। वैसे भी घर में पका भोजन ही श्रेष्ठ होता है क्योंकि उसमें वात्सल्य, प्रेम रहता है। अत: हमेशा ही घर में बने भोजन को प्राथमिकता दें।