Bakrid 2018 : बकरीद पर जानिये मक्का-मदीना और हज का इतिहास
By: Ankur Wed, 22 Aug 2018 2:32:00
देशभर में 'ईद-उल-जुहा' अर्थात बकरीद Bakrid 2018 की धूमधाम को देखा जा सकता हैं। सभी तरफ इसकी रौनक फैली हुई हैं। इसी त्योंहार के साथ हज की यात्रा भी शुरू हो चुकी हैं, जो कि हर मुसलमान का सपना होता हैं। इस हज यात्रा में मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग मक्का मदीना जाते हैं। मक्का मदीना मुस्लिमों के लिए जन्नत का दरवाज़ा है। हर मुस्लिम अपने जीवन में एक बार तो हज यात्रा पर जरूर जाना चाहता हैं। आज हम आपको बकरीद के इस ख़ास मौके पर हज के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं।
चार हज़ार साल पहले मक्का का मैदान पूरी तरह से निर्जन था। मुसलमानों का मानना है कि पैग़ंबर अब्राहम ने अपनी पत्नी हाजिरा और बेटे इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब लाने का निर्देश दिया ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें बचाया जा सके। अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम से उन्हें अपनी किस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा। उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया। कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया। हाजिरा और इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए।मायूस हाजिरा सफ़ा और मारवा पहाड़ी से मदद की चाहत में नीचे उतरीं। भूख और थकान से टूट चुकी हाजिरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से गुहार लगाई। इस्माइल ने ज़मीन पर पैर पटका तो धरती के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई।
हाजिरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया। जब पैग़ंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए।पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा। अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार निर्माण किया। इसे काबा कहा जाता है।
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने ही हर साल यहां मुसलमान आते हैं। सदियों बाद मक्का एक फलता-फूलता शहर बन गया और इसकी एकमात्र वजह पानी के मुकम्मल स्रोत का मिलना था। धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वर की पूजा शुरू कर दी। पैगंबर अब्राहम का पाक स्थान मूर्तियों को रखने का ठिकाना बन गया। सालों बाद अल्लाह ने पैग़ंबर मोहम्मद को कहा कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की ज़ियारत होने दें। 628 साल में पैग़ंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की। यह इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर अब्राहम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया।
इस्लामिक परंपरा में इस बात का ज़िक्र है कि काबा का निर्माण पैग़बर अब्राहम और इस्माइल ने हज़ारों साल पहले एक ऐसे पवित्र स्थल के रूप में किया था जहां एक के अलावा किसी और की ज़ियारत नहीं होती थी। पहले काबा में अलग-अलग तीर्थयात्री आने लगे थे। यहां तक कि अरब प्रायद्वीप में तब के रहने वाले ईसाई भी आते थे। स्थानीय आदिवासी यहां मूर्तियों की पूजा भी करने लगे थे। काबा आगे चलकर इस्लाम में एकेश्वरवाद का प्रतीक बन गया।