
जालौर जिले के आहोर और जालौर उपखंड के कई गांवों में इन दिनों रहस्यमयी बीमारी ने भेड़-बकरियों के झुंडों में कहर बरपा रखा है। पिछले एक महीने में करीब 1500 से अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है, जिससे पशुपालकों में गहरी चिंता का माहौल है। लगातार हो रही मौतों के बावजूद पशुपालन विभाग अभी तक बीमारी का कारण स्पष्ट नहीं कर पाया है।
विभाग की जांच अधर में
पशुपालन विभाग की टीमें कई प्रभावित गांवों का दौरा कर सैंपल तो ले चुकी हैं, लेकिन अब तक किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाई हैं। जोधपुर से आई पशु चिकित्सा टीम ने भी ब्लड सैंपल लिए थे, मगर रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। रिपोर्ट आने में देरी के चलते बीमारी की पुष्टि नहीं हो सकी है, जिससे उपचार भी शुरू नहीं हो पाया है। स्थानीय विधायक ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत कार्रवाई करें, लेकिन अभी तक प्रशासनिक स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
गांवों में मची हाहाकार
जालौर, मायालावास, मेडाउपरला, निचला मेडा सहित आसपास के कई गांवों में स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। कई पशुपालकों के झुंड लगभग समाप्त होने की कगार पर हैं। जिनके पास 50 भेड़ें थीं, उनमें से आधी से अधिक मर चुकी हैं, वहीं कुछ लोगों के पास केवल छोटे-छोटे मेमने ही बचे हैं।
पशुपालकों में बढ़ी बेचैनी
ग्रामीणों का कहना है कि विभाग और सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे बीमारी तेजी से फैलती जा रही है। कई जगह तो पूरे झुंड खत्म हो चुके हैं, जिससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। लोगों की मांग है कि फौरन जांच रिपोर्ट जारी की जाए और बीमारी की पहचान कर उपचार शुरू किया जाए, ताकि बाकी बचे पशुओं को बचाया जा सके।
किसानों की व्यथा
मायलावास गांव के अजाराम भील के पास 40 में से केवल 3 भेड़ें ही बची हैं, जबकि उनके 8 छोटे मेमने अभी जीवित हैं। दीपाराम देवासी की 15, रूपाराम की 12, और हिम्ताराम–रेंगाराम नामक दो भाइयों की 150 से अधिक भेड़ें मर चुकी हैं। इसी तरह जोमाराम कर्मीराम देवासी की 15 और छगनाराम पूनाराम भील की 50 भेड़ें भी बीमारी की चपेट में आकर मर चुकी हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर स्थिति पर जल्द काबू नहीं पाया गया, तो यह संकट जिले की पशुधन अर्थव्यवस्था को गहरा झटका दे सकता है।














