पतंजलि के माफीनामे के प्रकाशन पर नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट, एक बार फिर से लगाई लताड़

By: Shilpa Tue, 23 Apr 2024 4:12:10

पतंजलि के माफीनामे के प्रकाशन पर नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट, एक बार फिर से लगाई लताड़

नई दिल्ली। पतंजलि आयुर्वेद की ओर से अपनी दवा कोरोनिल को कोरोना से निपटने वाली औषधि बताए जाने के प्रचार पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बार फिर से पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव को लताड़ लगाई। पिछली सुनवाई पर अदालत ने इस मामले में पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव से कहा था कि वे इस मामले में सार्वजनिक माफी मांगें। इससे पहले बाबा रामदेव और पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने अदालत में हाथ जोड़कर माफी मांगी थी। लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। इसके बाद बाबा रामदेव ने कहा था कि हम सार्वजनिक माफी के लिए तैयार हैं। इसके बाद अदालत ने एक सप्ताह का वक्त दिया था। अब कोर्ट में फिर से पेशी हुई तो अदालत ने अखबारों में छपे माफीनामे पर ही सवाल उठा दिया।

इस दौरान बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण खुद भी अदालत परिसर में मौजूद थे। बेंच ने सवाल किया कि आखिर माफीनाम कल ही क्यों प्रकाशित कराया गया। इसके अलावा बेंच ने यह भी सवाल उठाया कि क्या आपका माफीनाम उतना बड़ा ही छपा है, जितना बड़ा विज्ञापन होता है। इस पर पतंजलि आयुर्वेद के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस माफीनामे में सुप्रीम कोर्ट में वकीलों की पेशी के बाद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने और विज्ञापन में गलत दावा करने पर माफी मांगी गई है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट की ओर से विज्ञापन और माफीनामे के साइज को लेकर जब सवाल उठाया गया तो उन्होंने कहा कि इसके प्रकाशन में 10 लाख रुपये का खर्च आया है।

बाबा रामदेव के वकील ने बताया कि हमने कल कई अखबारों में माफीनामा छपवाया है। पतंजलि आयुर्वेद की ओर से छपे इस माफीनामे में कहा गया है, 'पतंजलि आयुर्वेद सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का बेहद सम्मान करता है। हम विज्ञापन छपवाने और सुप्रीम कोर्ट में वकीलों के बयान के बाद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए माफी मांगते हैं। हम इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि भविष्य में ऐसी कोई गलती न हो। हम आपको दोबारा भरोसा दिलाते हैं कि संविधान और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बनाए रखेंगे।'

इसके बाद विज्ञापन पर अदालत ने पूछा कि ये उतने ही साइज का माफीनामा है, जितना बड़ा आप विज्ञापन देते हैं? अदालत ने पूछा क्या आप हमेशा इतने साइज का ही विज्ञापन देते है? जब पतंजलि के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि कंपनी ने विज्ञापन पर लाखों खर्च किए हैं, तो अदालत ने जवाब दिया कि इसकी हमें कोई चिंता नहीं है।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि वह इस मामले की याचिका में कंजूमर एक्ट को भी शामिल कर सकते हैं। ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय का क्या? हमने देखा है कि पतंजलि मामले में टीवी पर दिखाया जा रहा है कि कोर्ट क्या कह रहा है। ठीक उसी समय एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आयुष मंत्रालय ने नियम 170 (राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर रोक) को वापस लेने का फैसला क्यों किया? क्या आपके पास यह कहने का अधिकार है कि मौजूदा नियम का पालन न करें? क्या यह मनमाना नहीं है? क्या आपको प्रकाशित होने वाली चीजों की बजाय राजस्व की अधिक चिंता नहीं है?

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि पतंजलि की तरफ से बताया कि उनकी तरफ से माफीनामा प्रकाशित किया गया है। हालांकि ये बात रिकॉर्ड पर नहीं है। इसके बाद मुकुल रोहतगी ने कहा कि आज ही वो इसे रिकॉर्ड पर डालेंगे। इस पर बेंच ने कहा कि मामला केवल पतंजलि तक ही नहीं है, बल्कि दूसरे कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर भी चिंता है। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को साफ तौर पर कहा कि माफीनामे का नया विज्ञापन भी पतंजलि को प्रकाशित करना होगा और उसे भी रिकॉर्ड पर लाना होगा।

जस्टिस कोहली ने कहा कि आपको यह बताना होगा कि एडवरटाइजिंग काउंसिल ने ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ क्या किया और सदस्यों ने भी ऐसे उत्पादों का समर्थन किया। आपके सदस्य दवाइयां लिख रहे हैं। जिस तरह का कवरेज हमने देखा है। अब हम सभी को देख रहे हैं। हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं को देख रहे हैं और किसी को भी धोखा नहीं दिया जा सकता है और केन्द्र सरकार को इस पर जागना चाहिए। केवल इस अदालत के समक्ष प्रतिवादियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य एफएमसीजी भी जनता को भ्रमित करने वाले भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं, विशेष रूप से शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं… जो उनके उत्पादों का उपभोग कर रहे हैं।

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