अल्फा से भी घातक है कोरोना का डेल्टा वैरिएंट, भारत में दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार: स्टडी

By: Pinki Sat, 12 June 2021 6:52:44

अल्फा से भी घातक है कोरोना का डेल्टा वैरिएंट, भारत में दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार: स्टडी

डेल्टा वैरिएंट (B.1.617.2) की वजह से ही भारत में कोरोना की दूसरी लहर इतनी खतरनाक हुई। दक्षिण भारत के कई राज्य इस वक्त इस लहर का सामना कर रहे हैं। कोरोना के अन्य वैरिएंट की वजह से एक घर में एक ही व्यक्ति संक्रमित हो रहा था, जबकि डेल्टा वैरिएंट ने परिवार में एक से ज्यादा लोग को संक्रमित किया। यानी अगर घर का कोई सदस्य कोरोना संक्रमित हुआ, तो परिवार के ज्यादातर सदस्य भी संक्रमण की चपेट में आने से खुद को बचा नहीं पाए। यह वैरिएंट अक्टूबर 2020 में सबसे पहले भारत में ही पाया गया था। भारत में दूसरी लहर 11 फरवरी से शुरू हुई थी और अप्रैल में भयावह हो गई थी। एक स्टडी में देश में कोरोना का वैरिएंट डेल्टा सुपर इन्फेक्शियस मिला है, जो दूसरी लहर के दौरान काफी तेजी से फैला। इसने ही भारत में 1.80 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली है। इस वैरिएंट पर एंटीबॉडी या वैक्सीन कारगर है या नहीं, यह पक्के तौर पर नहीं पता। डेल्टा वैरिएंट पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस, दवाएं कितनी प्रभावी हैं इस पर WHO का कहना है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. यह भी नहीं पता कि इसकी वजह से रीइन्फेक्शन का खतरा कितना है। शुरुआती नतीजे कहते हैं कि कोविड-19 के ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होने वाली एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की इफेक्टिवनेस कम हुई है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन सरकार के हेल्थ संगठन पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) ने इस पर एक स्टडी की है। स्टडी के मुताबिक, घर में एक साथ रह रहे लोगों में B.1.1.7 की तुलना में B.1.617.2 वैरिएंट ज्यादा तेजी से फैलता है। स्टडी से पता चलता है कि सबसे पहले ब्रिटेन में पाए गए अल्फा वैरिएंट की तुलना में डेल्टा वैरिएंट एक घर में 64% ज्यादा तेजी से फैलता है। शुक्रवार को जारी स्टडी में कहा गया, 'कुल मिलाकर हमने घर में साथ रहने वाले परिवारों के बीच B.1.1.7 की तुलना में B.1.617.2 को ज्यादा संक्रामक पाया। इस स्टडी के जरिए डेल्टा वैरिएंट के ज्यादा संक्रामक होने के सबूत मिले हैं।'

घर में एक साथ रह रहे लोगों में अल्फा वैरिएंट (B.1.17) की तुलना में डेल्टा वैरिएंट ज्यादा तेजी फैसला है। अल्फा वैरिएंट सबसे पहले ब्रिटेन में पाया गया था। हालांकि, दोनों ही वैरिएंट को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने वैरिएंट ऑफ कंसर्न घोषित किया था।

ज्यादातर देशों में 80-90% केस डेल्टा वैरिएंट से

हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड माइक्रो बायोलॉजी (CCMB) के एडवाइजर डॉ राकेश मिश्रा का कहना है कि ऐसा लगता है कि ज्यादातर देशों में 80-90% मामले डेल्टा वैरिएंट के कारण आ रहे हैं। दो महीने में दूसरे नए वैरिएंट आने के साथ ही यह बदल जाएगा।

ब्रिटेन में कुछ रिपोर्टों ने सुझाव दिया गया कि डेल्टा कुछ न्यूट्रिएंट्स ले रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा।

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