महाराष्ट्र चुनाव: महाविकास अघाड़ी टूट की कगार पर, एक-दूसरे के खिलाफ उतारे गए प्रत्याशी
By: Sandeep Gupta Wed, 30 Oct 2024 1:49:08
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के करीब आते ही महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को आंतरिक कलह खुलकर सामने आ चुकी है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे द्वारा स्थापित किए गए महाविकास अघाड़ी गठबंधन में विखंडन के संकेत मिल रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले महाविकास अघाड़ी में तीखे मतभेद सामने आ गए हैं और अघाड़ी के तीनों घटक दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए हैं।
महाविकास अघाड़ी में चल रही अंदरूनी कलह ने महाराष्ट्र को प्रभावी ढंग से संचालित करने की उनकी सामूहिक क्षमता पर संदेह पैदा कर दिया है। विशेषकर कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के बीच सीट-बंटवारे पर बार-बार विफल हुई वार्ता ने सार्वजनिक तौर इस गठबंधन के प्रति अहमति पैदा हो गई है।
वहीं इस तरह के विवादों ने गठबंधन के भीतर दरार पैदा कर दी है, जिससे चुनाव के करीब आते ही इसका भविष्य खतरे में पड़ गया है। महाराष्ट्र में गठबंधन को निभा पाने में असफल तीन पार्टियां क्या करेंगी, ये सवाल चुनाव से पहले ही उठने लगा है।
एक-दूसरे के खिलाफ खड़े किए उम्मीदवार
महाविकास अघाड़ी ने चार स्थानों परांडा, दक्षिण सोलापुर, दिग्रास और मिराज में एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे हैं। दिग्रस में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट ने पवन जयसवाल को उम्मीदवार बनाया है। निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का गठबंधन का फैसला गहरे मतभेदों का स्पष्ट संकेत है। इस कदम ने महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों पार्टियों की आलोचना हो रही है और इससे संदेह उठ रहा है।
इतना ही नहीं गठबंधन की राज्य को प्रशासित करने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं जब ये अपने कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उम्मीदवारों की बिक्री और सीट वितरण पर असहमति से जुड़े विवाद ने एमवीए की छवि को और खराब कर दिया है, स्थानीय नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन और तोड़फोड़ की घटनाओं के कारण इन पर विश्वास कर पाना मुश्किल कर दिया है।
भीतर और बाहर की चुनौतियां
एमवीए का विवाद सिर्फ़ सीट बंटवारे की समस्या से आगे बढ़कर इसके नेताओं के बीच वैचारिक और रणनीतिक असहमति तक फैला हुआ है, जिसमें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नामांकन सहित प्रमुख मुद्दों पर सार्वजनिक बहस शामिल है, जिससे गठबंधन में और तनाव पैदा हो रहा है। आम सहमति की कमी और दिखने वाली अंदरूनी कलह गठबंधन की ताकत और एकता को कमज़ोर कर रही है, जिससे इसकी चुनावी संभावनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है।
एमवीए छोटे दलों को एकजुट करने में रहा विफल
इसके अलावा, गठबंधन द्वारा सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप देने से इनकार करने के कारण समाजवादी पार्टी और अन्य छोटी पार्टियों ने स्वतंत्र चुनावी रास्ता अपनाने का फैसला किया है, जिससे विपक्ष में बिखराव और बढ़ गया है। सोशलिस्ट पार्टी का अपना अलग रास्ता अपनाने का फैसला गठबंधन की विफलता का सबूत है। एमवीए सभी सदस्यों को शामिल करने और उनके साथ प्रभावी ढंग से समन्वय करने में विफल रहा है।
एकजुट है महायुति, भाजपा को बढ़त मिलने की बढ़ी संभावना
वहीं इसके ठीक विपरीत, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगी दल अधिक आपसी समन्वय और एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं। अपने गठबंधनों को बरकरार रखने और विभिन्न गुटों के स्थानीय नेताओं को एकीकृत करने की बीजेपी की क्षमता एक संयुक्त मोर्चे को उजागर करती है जो एमवीए के भीतर अव्यवस्था के बिल्कुल विपरीत है। यह एकता बीजेपी की स्थिति को मजबूत करती है, जिससे आगामी चुनावों में उसके खिलाफ एकजुट चुनौती पेश करने की एमवीए की क्षमता पर सवाल उठते हैं।