'चंद्रयान-2' : 15 और 22 जुलाई की लॉन्चिंग में किए गए ये 4 जरूरी बदलाव, चांद पर पहुंचने में लगेंगे 48 दिन
By: Pinki Mon, 22 July 2019 09:53:26
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) का दूसरा मून मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) आज यानी 22 जुलाई को दोपहर 2:43 बजे देश के सबसे ताकतवर रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाएगा। इस राकेट को इसके विशालकाय आकार की वजह से बाहुबली (Rocket Bahubali) नाम दिया गया है। बाहुबली का वजन करीब 640 टन है। इसकी ऊंचाई 15 स्टोरी बिल्डिंग के बराबर है। बाहुबली रॉकेट करीब 3.8 टन वजनी सेटेलाइट को चांद पर ले जाएगा। भारत के सबसे भारी-भरकम लॉन्च पैड से ये तीसरा लॉन्च होगा। इस मिशन की सबसे बड़ी बात ये है कि ये पूरी तरह से स्वदेशी है। इस मिशन की कामयाबी के बाद भारत चांद की सतह पर लैंड करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इसके पहले अमेरिका, रुस और चीन अपने यान को चांद की सतह पर भेज चुके हैं। लेकिन अब तक किसी ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास कोई यान नहीं उतारा है। चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने के लिए चंद्रयान-2 की 48 दिन की यात्रा शुरू हो जाएगी। लांच के करीब 16 मिनट बाद चंद्रयान-2 पृथ्वी से करीब 182 किमी की ऊंचाई पर जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट से अलग होकर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसरो वैज्ञानिकों ने 15 जुलाई की लॉन्चिंग की तुलना में आज होने वाली लॉन्चिंग में कुछ बदलाव किए हैं। आइए जानते हैं इन महत्वपूर्ण बदलावों को...
🇮🇳 #ISROMissions 🇮🇳
— ISRO (@isro) July 21, 2019
The launch countdown of #GSLVMkIII-M1/#Chandrayaan2 commenced today at 1843 Hrs IST. The launch is scheduled at 1443 Hrs IST on July 22nd.
More updates to follow... pic.twitter.com/WVghixIca6
1. पृथ्वी के ऑर्बिट में जाने का समय करीब एक मिनट बढ़ा दिया गया है
15 जुलाईः चंद्रयान-2 को तब 973.70 सेकंड (करीब 16.22 मिनट) में पृथ्वी से 181.61 किमी पर जाना था।
22 जुलाईः चंद्रयान-2 अब 974.30 सेकंड (करीब 16.23 मिनट) में पृथ्वी से 181.65 किमी की ऊंचाई पर पहुंचेगा।
2. पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार चक्कर में बदलाव, एपोजी में 60.4 किमी का अंतर
15 जुलाईः चंद्रयान-2 अगर लॉन्च होता तो इसकी पेरिजी 170.06 किमी और एपोजी 39059.60 किमी होती। यानी एपोजी में 60.4 किमी का अंतर लाया गया है। यानी पृथ्वी के चारों तरफ लगने वाला चक्कर कम किया जाएगा।
22 जुलाईः चंद्रयान-2 लॉन्चिंग के बाद पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसकी पेरिजी (पृथ्वी से कम दूरी) 170 किमी और एपोजी (पृथ्वी से ज्यादा दूरी) 39120 किमी होगी।
3. चंद्रयान-2 की वेलोसिटी में 1.12 मीटर प्रति सेकंड का इजाफा किया गया
चंद्रयान-2 आज यानी 22 जुलाई को लॉन्च होने के बाद अब चांद की ओर ज्यादा तेजी से जाएगा। अब अंतरिक्ष में इसकी गति 10305.78 मीटर प्रति सेकंड होगी। जबकि, 15 जुलाई को लॉन्च होता तो यह 10,304.66 मीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की तरफ जाता। यानी इसकी गति में 1.12 मीटर प्रति सेकंड का इजाफा किया गया है।
4. चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने में लगेंगे 48 दिन
अगर 15 जुलाई को चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लॉन्च होता तो वह 54 दिन में 6 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करता। लेकिन आज की लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने में 48 दिन ही लगेंगे। यानी चंद्रयान-2 चांद पर 6 या 7 सितंबर को ही पहुंचेगा। इसरो वैज्ञानिक इसके लिए चंद्रयान-2 को पृथ्वी के चारों तरफ लगने वाले चक्कर में कटौती होगी। संभवतः अब चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ 5 के बजाय 4 चक्कर ही लगाए।
बाहुबली की खासियत
- अब तक का सबसे शक्तिशाली और भारीभरकम लॉन्चर है। जिसे पूरी तरह से देश में बनाया गया है।
- इसका वजन 640 टन है। इसकी ऊंचाई 15 स्टोरी बिल्डिंग के बराबर है।
- बाहुबली रॉकेट करीब 3.8 टन वजनी सेटेलाइट को चांद पर ले जाएगा। लो अर्थ ऑर्बिट में ये 10 टन वजनी सेटेलाइट ले जा सकता है।
- ये चंद्रायन मिशन-2 के सेटेलाइट को उसके ऑर्बिट में स्थापित करेगा।
- इसमें S200 रॉकेट बूस्टर लगे हैं जो रॉकेट को इतनी शक्ति देगा कि वो आसमान में छलांग लगा सके। S200 को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में बनाया गया है।
- इसमें सबसे शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन C25 लगा है जिसे CE-20 पावर देगा।
- GSLV Mk 3 के अलग-अलग मॉडल का अब तक तीन बार सफल प्रक्षेपण हो चुका है।
बता दे, इस पूरे प्रोजेक्ट में इसरो को 11 साल लग गए हैं। चंद्रयान 2 भारत का दूसरा मून मिशन है। भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर और रोवर उतारेगा। जो वहां के विकिरण और तापमान का अध्ययन करेगा। मिशन का प्राथमिक उद्देश्य चांद की सतह पर सुरक्षित उतरना या कहे कि धीरे-धीरे आराम से उतरना (सॉफ्ट-लैंडिंग) और फिर सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना है। इसका मकसद चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और किसी न किसी रूप में पानी की उपस्थिति का पता लगाना होगा। दक्षिणी सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और रोवर (प्रज्ञान) उससे बाहर निकलेगा। इस प्रक्रिया में चार घंटे का वक्त लगेगा। रोवर के सतह पर आने के 15 मिनट बाद ISRO को वहां की तस्वीर मिलनी शुरू हो जाएगी।