Holi 2022 : घूमने के लिए मिल रहे हैं चार दिन, लें इन 6 जगहों की होली का मजा

By: Ankur Fri, 11 Mar 2022 3:55:46

Holi 2022 : घूमने के लिए मिल रहे हैं चार दिन, लें इन 6 जगहों की होली का मजा

मार्च का महीना जारी हैं और कुछ दिनों में ही होली का त्यौहार आने को हैं। इस बार होली 17 और 18 मार्च की हैं और इसके बाद 19-20 मार्च को वीकेंड हैं, तो आपको चार दिन की छुट्टियां मिल रही हैं जिसमें आप कहीं भी घूमने जा सकते हैं। आप चाहे तो ऐसी जगहों का चुनाव कर सकते हैं जो अपनी होली सेलेब्रेशन के लिए जानी जाती हैं। जी हां, देश में कई ऐसी जगहें हैं जहां की होली की अपनी अलग ही पहचान हैं और आप यहां घूमने जाकर इस बार की होली को यादगार बना सकते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे है जिनमें आप इन चार दिन की छुट्टियों में होली का मजा ले सकते हैं।

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बरसाने की लठमार होली

यह होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह होली लठ (लाठी या डंडा) से भी खेली जाती है। मथुरा के पास स्थित बरसाना में यह त्योहार पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। बरसाना की इस होली को खेलने के लिए भारत के अनेक हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी लोग आते हैं। यह होली इसलिए फेमस है क्योंकि यहां त्योहार का आनंद लेने के लिए लोग रंगों के साथ-साथ लट्ठ का भी प्रयोग करते हैं। लठमार होली की शुरुआत होली के मुख्य पर्व से एक सप्ताह पहले होती है। इस साल इसकी शुरुआत 15 मार्च से होगी। अगले दिन यह सेलिब्रेशन नंदगांव में पहुंचता है। लठमार होली से दो दिन पहले बरसाना पहुंचना ठीक रहता है क्योंकि इससे आप लड्डू होली का आनंद ले सकेंगे। इसमें लोग एक-दूसरे पर मिठाई (लड्डू) फेंकते हैं। साथ ही राधा-कृष्ण के भजन गाए जाते हैं।

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असम

होली पर आप असम जा सकते हैं। चार दिन के ट्रिप पर आप असम की खूबसूरती और होली आकर्षण का लुत्फ ले सकते हैं। असम में दो दिन होली का पर्व मनाया जाता है। इसे डोल जात्रा कहते हैं। यहां कि होली भी उत्तर भारत की तरह ही होती है, जिसमें होलिका दहन होता है। लोग मिट्टी की झोपड़ी बनाकर उसे जलाते हैं। दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है। हर साल यहां मार्च महीने में काफी संख्या में लोग होली खेलने पहुंचते हैं।

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बांके बिहारी मंदिर

वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर की होली काफी चर्चित है। जैसी होली यहां खेली जाती है वैसी आपको कहीं और देखने को मिल ही नहीं सकती। कथाओें में ऐसा वर्णन किया गया है कि स्वयं भगवान कृष्ण इस मंदिर में सफेद पोशाक में आए थे और उन्होंने वहां से अपने सभी भक्तों के ऊपर गुलाल और फूलों की वर्षा की थी। इसी प्रथा को आगे बढ़ाते हुए बांके बिहारी के पुजारी मंदिर में आए सभी श्रद्धालुओं पर पुष्प और गुलाल फेंकते हैं। होली के समय मंदिर का माहौल ऐसा हो जाता है कि वहां आए श्रद्धालु भी किसी दूसरे लोक में पहुंच जाते हैं और बस कृष्ण के भजन गुनगुनाते रहते हैं। सिर्फ यहीं नहीं , जब हजारों की तादाद में लोग वहां गानों की धुन पर थिरकते हैं, तो वहां का माहौल अविस्मरणीय हो जाता है।

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रॉयल होली, उदयपुर

होली की पूर्व संध्या पर उदयपुर में खास तरह से होली मनाई जाती है। इसे शाही होली कहते हैं। इस त्योहार में लोग आग जलाते हैं और शाही तरीके से होली सेलिब्रेट करते हैं। इस दौरान सिटी पैलेस में शाही निवास से मानेक चौक तक शाही जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में घोड़े, हाथी से लेकर रॉयल बैंड शामिल होता है। उदयपुर की इस शाही होली की खासियत यह है कि यहां आपको राजस्थान की पूरी सभ्यता और परंपरा देखने को मिल जाएगी। सभी लोग राजस्थानी कपड़े पहने होते हैं और उनके परंपरिक लोकगीत की धुन पर नांचते हैं। वहां आए सभी अतिथियों को शाही भोज भी करवाया जाता है और उसके बाद खूब सारी आतिशबाजी होती है।

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शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में होली को बसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत प्रसिद्ध बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह विश्व भारती यूनिवर्सिटी में खेली जाती है। यहां के छात्र आने वाले सैलानियों के लिए कई अनोखे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इस दौरान लोगों पर रंग और गुलाल भी डाला जाता है। इस त्योहार का बंगाल की संस्कृति में एक खास महत्व है।

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पंजाब

पंजाब में होला मोहल्ला नाम का त्योहार बहुत प्रचलित है। दूर-दूर से इसे देखने के लिए लोग आते हैं। बता दें, होला मोहल्ला का आयोजन पंजाब के आनंदपुर साहिब में हर साल किया जाता है। ये त्योहार पारंपरिक होली से अलग इसलिए है, क्योंकि यहां रंगों से नहीं बल्कि, तलवार बाजी, घुड़ सवारी और मार्शल आर्ट के माध्यम से होली का त्योहार मनाया जाता है। सिर्फ यही नहीं, इस कार्यक्रम के बाद जगह-जगह विशाल लंगर लगाए जाते हैं और सभी को स्वादिष्ट हलवा, पूरी, गुजिया और मालपुआ परोसा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि होला मोहल्ला की शुरुआत सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी। आज काफी सालों से इस त्योहार को पूरे 6 दिन तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

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