आने वाला हैं श्रीकृष्ण का त्यौहार जन्माष्टमी, देश के इन 8 मंदिरों में दिखता हैं अद्भुद नजारा
By: Ankur Thu, 04 Aug 2022 9:58:50
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता हैं। इस बार जन्माष्टमी का त्यौहार 19 अगस्त को आ रहा हैं। इस दिन देशभर के मंदिरों का नजारा ही अलग होता हैं जो मन को खुशी और सुकून देने का काम करता हैं। भक्तगण भगवान की पूजा करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। लेकिन देश के कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां इस दिन का नजारा बेहद ही अनोखा होता हैं। इन मंदिरों में जन्माष्टमी पर जाकर दर्शन करना अपनेआप में एक अद्भुत अनुभूति होती है। आइये जानते हैं देश के ऐसे मंदिरों के बारे में जहां कृष्ण जन्मोत्सव का उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।
मथुरा जन्मभूमि का मंदिर
श्रीकृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश की प्राचीन नगरी मथुरा के कारागार में हुआ था। उस स्थान पर वर्तमान में एक हिस्से पर मंदिर और दूसरे पर मस्जिद बनी हुई है। सबसे पहले ईस्वी सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे। तभी से यह भूमि भी विवादित हो चली है। द्वारकाधीश मंदिर में प्रभु श्रीकृष्ण के काले रंग की प्रतिमा स्थापित है, जबकि यहां राधा की मूर्ति सफेद रंग की है। प्राचीन मंदिर होने के कारण इसकी वास्तुकला भी भारत की प्राचीन वास्तुकला से प्रेरित बताई जाती है। जन्माष्टमी के दिन सुबह से ही यहां विशेष पूजा की शुरुआत हो जाती है फिर रात को 12 बजे के बाद पूरी रात श्रीकृष्ण का श्रृंगार और पूजन होता है।
गुजरात का द्वारकाधीश मंदिर
द्वारकाधीश मंदिर, जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, आदि शंकराचार्य द्वारा देखे गए चार धाम स्थलों में से एक है। ये मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है और गुजरात में गोमती नदी के तट पर, राजा कृष्ण से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण हरि गृह (कृष्ण का घर) के आस-पास उस भूमि पर किया गया था जिसे भगवान ने समुद्र से पुनः प्राप्त किया था। वैसे तो द्वारका नगर के लोग हमेशा ही कृष्ण भक्ति में डूबे दिखाई देते हैं, लेकिन जन्माष्टमी के दिन इन लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। जन्माष्टमी पर यहां होने वाले भव्य पूजन समारोह को देखने लोग दूर-दूर से द्वारका आते हैं।
दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर
आप अपने पूरे परिवार के साथ जन्माष्टमी के दिन अक्षरधाम मंदिर के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। क्योंकि यह मंदिर न सिर्फ बेहद खूबसूरत है बल्कि यहां साल भर भक्तों की भीड़ भी लगी रहती है। बता दें कि अक्षरधाम मंदिर गुलाबी बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है और इस मंदिर के मुख्य देवता स्वामीनारायण हैं। मंदिर एक वास्तुशिल्प चमत्कार है जो जटिल नक्काशी और संरचनात्मक भव्यता वाले लोगों को विस्मित करता है। जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर, मंदिर को खूबसूरती से सजाया जाता है और बड़े पैमाने पर उत्सव मनाया जाता है।
गोकुल के मंदिर
भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव, बरसाना आदि जगहों पर बीता। गोकुल मथुरा से 15 किलोमीटर दूर है। यमुना के इस पार मथुरा और उस पार गोकुल है। कहते हैं कि दुनिया के सबसे नटखट बालक ने वहां 11 साल 1 माह और 22 दिन गुजारे थे। वर्तमान की गोकुल को औरंगजेब के समय श्रीवल्लभाचार्य के पुत्र श्रीविट्ठलनाथ ने बसाया था। गोकुल से आगे 2 किमी दूर महावन है। लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं। यहां चौरासी खम्भों का मंदिर, नंदेश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मंदिर हैं। संपूर्ण गोगुल ही मंदिर है।
वृंदावन का मंदिर
मथुरा के पास वृंदावन में रमण रेती पर बांके बिहारी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहीं पर प्रेम मंदिर भी मौजूद है और यहीं पर प्रसिद्ध स्कॉन मंदिर भी है जिसे 1975 में बनाया गया था। यहां विदेशी श्रद्धालुओं की भी अच्छी-खासी तादाद है जो कि हिन्दू हैं। इसी बृज क्षेत्र में गोवर्धन पर्वत भी है जहां श्रीकृष्ण से जुड़े अनेक मंदिर है। जन्माष्टमी के दिन यहां मंगला आरती हुआ करती है, फिर इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए रात 2 बजे ही मंदिर के दरवाजे खुल जाते हैं। ये जानना भी अहम है कि इस मंदिर में मंगला आरती साल में केवल एक बार ही होती है। बालकृष्ण के जन्म के बाद यहां पर श्रद्धालुओं के बीच खिलौने और वस्त्र बांटे जाते हैं।
गुजरात का श्रीकृष्ण निर्वाण स्थल
गुजरात स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के पास प्रभास नामक एक क्षेत्र है जहां पर यदुवंशियों ने आपस में लड़कर अपने कुल का अंत कर लिया था। वहीं एक स्थान पर एक वृक्ष ने नीचे भगवान श्रीकृष्ण लेटे हुए थे तभी एक बहेलिए ने अनजाने में उनके पैरों पर तीर मार दिया जिसे बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने अपनी देह छोड़ दी। प्रभास क्षेत्र काठियावाड़ के समुद्र तट पर स्थित बीराबल बंदरगाह की वर्तमान बस्ती का प्राचीन नाम है। यह एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह विशिष्ट स्थल या देहोत्सर्ग तीर्थ नगर के पूर्व में हिरण्या, सरस्वती तथा कपिला के संगम पर बताया जाता है। इसे प्राची त्रिवेणी भी कहते हैं। इसे भालका तीर्थ भी कहते हैं।
केरल का गुरुवायूर मंदिर
इस मंदिर को पृथ्वी पर विष्णु के पवित्र निवास और दक्षिण भारत के द्वारका के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर 1638 के वर्ष में बनाया गया है। मंदिर में जाने या प्रवेश करने के लिए, एक सख्त ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है और गैर-हिंदुओं को इसके अंदर जाने की अनुमति नहीं है। यहां मंदिर में मूर्ति मोती का हार धारण करने वाले कृष्ण का चार भुजाओं वाला संस्करण है।
ओडिशा का जगन्नाथ पुरी मंदिर
ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान वासुदेव अपने अग्रज बलराम एवं बहन सुभद्रा (अर्जुन की पत्नी व अभिमन्यू की माता) के साथ विराजमान हैं। रथयात्रा के बाद यहां सबसे अधिक रौनक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ही होती है। यहां श्रीकृष्ण अपने भाई-बहन के साथ श्याम रंग में स्थापित हैं। हिंदू धर्म में इस मंदिर का खास महत्व है।