गुलशन कुमार की सुरीली यादें
By: Priyanka Maheshwari Fri, 05 May 2017 1:32:58
गुलशन कुमार की कहानी जर्रे से आफताब बनने की कहानी है| उन्होंने भारतीय संगीत उद्योग में ऐसे समय पर कदम रखा जब ये उद्योग धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा था| गुलशन कुमार अपनी मेहनत, दूरदृष्टि और जज्बे से संगीत उद्योग को नयी ऊँचाइयों पर ले गए| वो आम जनता की नब्ज़ को पहचानते थे अतः उन्होंने लोगों को वही दिया जो वो चाहते थे| ऐसा कर उन्होंने संगीत उद्योग में नए जीवन और ऊर्जा का संचार किया|
ऑडियो कैसेत्ट्स के बिक्री से संगीत क्षेत्र में व्यवसाय की शुरुआत करने वाले गुलशन ने इन्ही कैसेत्ट्स को सस्ते दामों पर बनाकर समाज के हर तबके तक पहुँचाया और हिंदी फिल्म संगीत जगत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया| सिर्फ यही नहीं, उन्होंने फिल्मों के निर्माण के क्षेत्र में कदम रख कर कई नए चेहरों को मौका भी दिया|
फिल्म निर्माण में उन्होंने पहला कदम वर्ष 1989 में ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ नामक फिल्म बनाकर किया| प्रेम प्रसंग पर आधारित इस फिल्म का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ और फिल्म भी कामयाब हो गयी| वर्ष 1990 में प्रदर्शित फिल्म ‘आशिकी’ ने सफलता के सारे कीर्तिमान तोड़ दिए| राहुल रॉय और अनु अग्रवाल द्वारा अभिनीत इस फिल्म ने अपने सुरीले संगीत से नयी बुलंदियों को छुआ| उनकी अगली कुछ फिल्में जैसे ‘बहार आने तक’ और ‘जीना तेरी गली में’ कुछ ख़ास सफल नहीं रहीं पर इनका संगीत कामयाब रहा|
12 अगस्त, 1997 को मुंबई के अंधेरी पश्चिम उपनगर जीत नगर में जीतेश्वर महादेव मंदिर के बाहर गोली मारकर गुलशन की हत्या कर दी गयी| हालाँकि मुंबई पुलिस ने हत्या की योजना के लिए संगीत निर्देशक जोड़ी नदीम-श्रवण के नदीम को अभियुक्त बनाया परन्तु अब्दुल रऊफ नामक एक अनुबंध हत्यारे ने गुलशन कुमार की हत्या के लिए पैसा प्राप्त करने की बात सन 2001 में कबूल लिया। 29 अप्रैल, 2009 को, रऊफ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। गुलशन कुमार के परिवार की इच्छा के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में किया गया।