देश की पहली महिला ऑटो रिक्शा ड्राइवर शीला दावरे इस क्षेत्र में और महिलाओं को लाना चाहती हैं। इसके लिए वह एकेडमी शुरू करना चाहती हैं और अगर ऐसा होता है तो यह इस तरह की पहली एकेडमी होगी। शीला का नाम पहली महिला ऑटो ड्राइवर के रूप में 1988 से लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज है। एकेडमी खोलने के लिए वह ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के चक्कर लगा रही हैं। एकेडमी के बारे में वह बताती है कि, ‘परमिट लेना आसान नहीं है और महिला ऑटो ड्राइवर को कड़ी मेहनत करनी होगी। मैंने काफी संघर्ष किया लेकिन अब खुश हूं कि सरकार महिलाओं को परमिट जारी कर रही है। मुझे लगता है कि महिलाओं के लिए एक महिला की एकेडमी से प्रोत्साहन और बढ़ेगा।’
शीला ने 12वीं की पढ़ाई के बाद 18 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। इसके बाद वह पुणे में ऑटो चलाने लग गई थी। इस दौरान उन्होंने काफी दबाव और विरोध का सामना किया लेकिन वे पीछे नहीं हटी। शीला बताती है कि, ‘मेरे माता-पिता ने इस फैसले का विरोध किया। लेकिन आज जब वे मुझे देखते हैं तो बहुत खुश होते हैं।’ शुरुआत में लोग शीला को महिला होने के कारण ऑटो किराए पर देने से डरते थे। उन्होंने धीरे-धीरे पैसे बचाए और जनवादी संगठन व यूनियन की मदद से अपना ऑटो खरीद लिया। शीला की अपने पति शिरीष कांबले से इसी दौरान मुलाकात हुई। शिरीष भी ऑटो ड्राइवर हैं। दोनों की दो बेटियां हैं और 2001 तक अलग अलग ऑटो चलाते थे। इसके बाद उन्होंने अपनी ट्रेवल कंपनी खोल ली।
शीला बताती है कि, ‘ मैंने 1988 से 2001 के बीच 13 साल तक ऑटो से लेकर मेटाडोर तक सभी तरह के वाहन चलाए हैं। अब मेरी कंपनी है और इस दौरान मैं कभी-कभी खुद भी ट्रिप पर जाती हूं। सरकार के महिलाओं को परमिट देने के बाद मैंने सोचा कि मैं इन महिलाओं को प्रशिक्षित कर अच्छा ड्राइवर बना सकती हूं।