प्रकृति में नर नारी के अलावा एक अन्य वर्ग भी है जो न तो पूरी तरह नर होता है और न नारी। जिसे लोग हिजड़ा या किन्नर या फिर ट्रांसजेंडर के नाम से संबोधित करते हैं। जी हां हिजड़ा जिसके बारे में जानने की उत्सुकता हमेशा से लोगों के जेहन में रहती है। यह जाति के लोग माता पिता नहीं बन सकते क्योंकि उनका प्रजनन अंग पूरी तरह विकसित नहीं होता है। शोध के अनुसार यह भी पाया गया है कि दूसरे लोगों की तुलना में किन्नर लगभग 20 साल ज़्यादा जीवित रहते हैं। जब भी हम किन्नरों के बारें में पढ़ते है तो एक ही सवाल दिमाग में आता है कि आखिर किन्नरों का जन्म कैसें होता है, ऐसे कौनसे कारण होतें है तो आज हम आपको किन्नरों के जन्म लेने के पीछे भी कई कारण बताते है।
प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने के दौरान ही शिशु का लिंग बनता है। शिशु के लिंग निर्धारण की प्रोसेस के दौरान ही किसी चोट, टॉक्सिक खान-पान, हॉर्मोनल प्रॉब्लम जैसी किसी वजह से पुरुष या महिला बनने के बजाय दोनों ही लिंगों के ऑर्गन्स या गुण आ जाते हैं।
शिशु के ट्रांसजेंडर बनने के कारण:#
वीर्य : वीर्य की अधिकता होने के कारण लड़का और रक्त की अधिकता होने के कारण लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा हिजड़ा पैदा होता है। वहीं किन्नरों के जन्म लेने का एक और कारण माना जाता है।
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ज्योतिष : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मपत्री के आठवें घर में शुक्र और शनि मौजूद हों और इन्हें गुरू, चन्द्र नहीं देख रहे हों तो व्यक्ति नपुंसक हो सकता है। कुंडली में जिस घर में शुक्र बैठा है उससे छठे या आठवें घर में शनि है तो व्यक्ति में प्रजनन क्षमता की कमी हो सकती है। अगर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि है, तो इस तरह की समस्या से बचाव होता है।
जन्म के समय कुंडली में शनि छठे या बारहवें घर में, कुंभ या मीन राशि पर हों, और ऐसे में कोई शुभ ग्रह शनि को नहीं देख रहा हो तो व्यक्ति में प्रजनन क्षमता की कमी हो जाती है और व्यक्ति किन्नर हो सकता है।
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बुखार: प्रेग्नेंसी के शुरूआती 3 महीने में महिला को बुखार आया हो और उसने कोई हेवी मेडिसिन ले ली हो।
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मेडिसिन्स: प्रेग्नेंसी में महिला ने कोई ऐसी दवा ली हो जिससे शिशु को नुकसान हो सकता हो।
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टॉक्सिक फ़ूड: अगर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला ने टॉक्सिक फ़ूड (जैसे केमिकली ट्रीटेड या पेस्टिसाइड्स वाले फ्रूट-वेजिटेबल्स) खाएं हों।
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एक्सीडेंट या बीमारी: प्रेग्नेंसी के 3 महीने में कोई ऐसा एक्सीडेंट या बीमारी जिससे शिशु के ऑर्गन्स को नुकसान पहुंचा हो।
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जेनेटिक डिसऑर्डर: 10-15% मामलों में जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण भी शिशु के लिंग निर्धारण पर असर पड़ता है।
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इडियोपैथिक या अज्ञात: ट्रांसजेंडर बच्चे पैदा होने के अधिकांश मामले इडियोपैथिक होते हैं यानि इनके कारणों का पता नहीं चल पाता।
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अबॉर्शन की दवा: अगर महिला ने बगैर डॉक्टरी सलाह लिए अपने मन से अबॉर्शन की दवा या घरेलू उपाय आजमाएं हो।