रिश्तों का खेल बड़ा निराला होता हैं कब क्या करने पर मजबूर कर दे इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता हैं। आजकल रिश्तों में तलाक आम बात हो चुका हैं और इसके दौरान की गई माँग अक्सर दूसरे पार्टनर की तकलीफ को बढाने का काम करती हैं। आज हम आपको महाराष्ट्र की ऐसी ही एक अनूठी घटना की जानकारी देने जा रहे है जिसमें एक महिला अलग रह रहे पति से दूसरा बच्चा पैदा करने की चाहत लेकर कोर्ट पहुंची हैं। तो आइये जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में।
मामला महाराष्ट्र के मुम्बई की नांदेड़ पारिवारिक न्यायालय का है। पति-पत्नी अलग-अलग रहते हैं। दोनों के बीच तलाक का मामला न्यायालय में चल रहा है। अपनी तरह के इस दुर्लभ मामले में 35 वर्षीय पत्नी ने तर्क दिया कि उसके मां बनने की उम्र के खत्म होने से पहले उसे अलग रह रहे पति के साथ या तो वैवाहिक संबंध बहाल करके या इनविट्रो फर्टिलाइजेशन के जरिए गर्भ धारण करने की अनुमति दी जाए।
अदालत ने पति और पत्नी दोनों को 24 जून को मैरिज काउंसलर के पास जाकर सलाह लेने और एक महीने के अंदर आईवीएफ विशेषज्ञ के साथ मुलाकात करने के लिए निर्देश दिया है। इसी सप्ताह दिए अपने आदेश में अदालत ने निजी स्वायत्तता और प्रजनन स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों का हवाला देकर पत्नी के 'प्रजनन के अधिकार' को 'मानव का मूलभूत अधिकार' बताया है।
बता दें कि पति और पत्नी दोनों ही काम करते हैं और उनका एक नाबालिग बच्चा पहले से है। मुंबई में रहने वाले पति ने वर्ष 2017 में क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक के लिए अर्जी दाखिल की थी। वहीं पत्नी ने भी नांदेड़ की अदालत का दरवाजा खटखटाया है। दोनों के मामले अभी लंबित हैं। इस बीच वर्ष 2018 में पत्नी ने दूसरे बच्चे के लिए अर्जी दाखिल की। पत्नी ने कहा कि दूसरा बच्चा उसके बुढ़ापे के लिए जरूरी है।
उधर, पति ने महिला की याचिका को अवैध, एक झांसा और सामाजिक मानकों के खिलाफ बताया है। अपने आदेश में नांदेड़ की फैमिली कोर्ट की जज स्वाति चौहान ने लिखा, 'तकनीक की मदद से बच्चा पैदा करना किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं है और ना ही लिखित या अलिखित सामाजिक मानकों का उल्लंघन है। प्रतिवादी तकनीक की मदद से बच्चे को पैदा करने को अपनी सहमति नहीं दे सकता है लेकिन बिना वाजिब तर्क के उसके मना करने पर उसे कानूनी और तार्किक परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।'