अजब-गजब: इस गांव में 700 साल से एक भी घर पर नहीं बनी है दूसरी मंजिल, आज भी इस गौभक्त की पत्नी का श्राप

भारत देश की संस्कृति और यहाँ का इतिहास काफी पुराना और रोचक है। यहां आज भी कई जगह ऐसी है जहां कई किस्से-कहानियां दफन है। वहीँ कई कहानियां और किस्से ऐसे भी हैं जो आज भी चर्चा का विषय है और किसी चमत्कार से कम नहीं है, जब बात राजस्थान की हो तो यहां की धरती ही कई वीर कहानियों की गवाह है। हम आपको आज इस लेख के जरिए एक ऐसे गांव के बारें में बताने जा रहे हैं जहां लोग आज भी अपने घर पर दूसरी मंजिल बनाने से डरते हैं। जी हां राजस्थान के चूरू में स्थित उडसर गांव पर आज भी 700 साल पुराने एक श्राप का साया है और आज भी यह गांव शापित है। आइए जानते हैं इसकी कहानी...

700 साल पुरानी है घटना

दरअसल 700 साल पहले इस गांव में भोमिया नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो कि गोभक्त था और उनकी गायों के प्रति गहरी आस्था थी। पास के ही गांव आसपालसर में भोमिया का ससुराल था। एक बार भोमिया के गांव में लुटेरे आ गए और वो उसकी गायों को चुरा कर ले जाने लगे। ऐसे में भोमिया ने वीरता के साथ उनका सामना किया और भोमिया स्वंय ही लुटेरों से भिड़ गया और वह खुद बुरी तरह से जख्मी हो गया। लुटेरों से बचने के लिए भोमिया भागते-भागते अपने ससुराल पहुंच गया और वहां उनके घर की दूसरी मंजिल पर जाकर छिप गया। लेकिन भोमिया को ढूंढते-ढूंढते लुटेरे वहां भी पहुंच गए और ससुराल वालों से भोमिया के बारे में पूछने लगे और मारपीट करने लगे।

पत्नी ने दिया था श्राप

ऐसे में प्रताड़ित होकर उन लोगों ने भोमिया जी के बारे में बता दिया। बताया जाता है कि लुटेरों ने भोमिया जी को कमरे से निकाला और उनका सिर उनके शरीर से अलग कर दिया। लेकिन भोमिया जी अपने सिर को हाथ में लिए हुए चोरों से लड़ते रहे और लड़ते-लड़ते अपने गांव की सीमा के पास आ गए। इस दौरान भोमिया का बेटा भी युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गया। वहीं, बाद में भोमिया का धड़ उडसर गांव में आकर गिर गया। इसी दौरान भोमिया की पत्नी ने गांव में किसी भी घर पर दूसरी मंजिल ना बनाने का श्राप दिया और खुद सती हो गई। हालांकि, युद्ध के बाद गांव में भोमिया का मंदिर बनाया गया, जिसकी लोग आज भी पूजा-अर्चना करते हैं।

नहीं बनाया जाता दो मंजिला घर

स्थानीय लोगों का कहना है कि ये श्राप इसलिए दिया गया ताकि आगे से अगर घर में कोई मंजिल नहीं होगी तो किसी पर वो मुसीबत नहीं आएगी जो भोमिया पर आई थी। उस दिन के बाद जिस किसी ने दो मंजिल मकान बनाया उस घर की औरत मर गई, जबकि एक का तो पूरा परिवार ही खत्म हो गया। इसी डर से लोग आज भी अपने घरों पर दूसरी मंजिल नहीं बनाते हैं। इस गांव में शिक्षित लोग भी हैं, लेकिन वो भी इस परंपरा को मानते हैं। लोगों का कहना है कि वे लोग इसे अंधविश्वास नहीं मानते हैं। गांव में दूसरी मंजिल का घर ना होना इस श्राप के बारे में लोगों के डर और आस्था दोनों का गवाह हैं।

भोमिया जी का मंदिर है आस्था का केंद्र


भोमिया का मंदिर आज भी इस गांव में मौजूद है और गांव के लोग इस मंदिर में गहरी आस्था रखते हैं। इतना ही नहीं हर दिन इस मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। वहीं, गांव से 2 किलोमीटर दूर रेतीली धोरों माटी के टिल्लों के बीच माता सती का मंदिर भी है। माता सती भोमिया जी और अपने बेटे की मौत के बाद सती हो गई थी। माता सती के मंदिर में बांस की झाड़ू चढ़ाई जाती है। इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं मंदिर में आए हुए हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है।