अनोखी परंपरा: यहां रंग और फूलों से नहीं बल्कि पत्थरों से खेली जाती है होली, लहूलुहान हो जाते हैं लोग

रंगों का त्योहार होली यानी खुशियों का त्योहार ऐसे में लोग इसे अलग-अलग तरह से मनाते है। जब बात भारत की हो तो यहां अलग अलग जगह विभिन्न तरीकों से होली खेली जाती है। आपने बरसाना की लट्ठमार होली और मथुरा-वृंदावन की होली के बारे में तो सुना ही होगा लेकिन क्या आप ने पत्थरों की होली के बारें में सुना है। जी यहां, राजस्थान के डूंगरपुर के भीलूड़ा गांव की अनोखी परंपरा है जहां रंगो और फूलों की होली नहीं बल्कि लट्ठ और पत्थरों से होली खेली जाती है। यह परंपरा इतनी खतरनाक है कि लोग इसमें घायल तक हो जाते हैं, फिर भी आज तक इस परंपरा को निभाया जा रहा है।

डूंगरपुर के भीलूड़ा गांव में खेली जाती है खुनी होली

दरअसल यह अनोखी होली राजस्थान के डूंगरपुर के आदिवासी इलाके के भीलूड़ा गांव में खेली जाती है। भीलूड़ा गांव डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले के बीच सागवाड़ा कस्बे के पास स्थित है। भीलूड़ा के अलावा, यह खतरनाक रिवाज रामगढ़ गांव में भी निभाया जाता है।

होली से पहले करते है पत्थरों को इकठ्ठा

जहां एक ओर होली से पहले सभी रंगों की और फूलों की खरीदारी करते है वहीं इस गांव में लोग होली से पहले पत्थरों को इकट्ठा करना शुरू कर देते है। यह खेल रात में ही होलिका दहन के बाद शुरू होता है और धुलंडी के दिन तक जारी रहता है। इस प्रथा में लोग एक ग्रुप बनाकर ढोल, कुंडी और चंग बजाकर लोक नृत्य भी करते है। इस परंपरा को यहां के लोग 'राड़' कहते है जिसे लड़ाई भी कहा जाता है।

होली में खेली जाती है राड़

इस ख़ास होली में लोगों का उत्साह देखने लायक होता है। ढोल की थाप पर नाचते और होली के गीत गाते हुए, आदिवासी बस्तियों के लोग पारंपरिक तरीके से 'राड़' का खेल खेलने के लिए रघुनाथ मंदिर के पास गर्ल्स स्कूल के खेल के मैदान में इकट्ठा होते हैं और हजारों लोग इस अनोखे खूनी खेल को देखने के लिए पहुंचते हैं। इस राड़ की होली से पहले लोग शुरू में गैर नृत्य करते हैं और एक बार जब यह नृत्य खत्‍म हो जाता है, तो वे 'राड़' बजाना शुरू कर देते हैं।

लहूलुहान हो जाते हैं लोग

बताया जाता जाता है कि यहां पत्थर से होली खेलने का रिवाज बहुत पुराना है। सालों से चली आ रही इस परंपरा के तहत लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर होली खेलते हैं। ढोल, चंग, कुंडी थाप पर नाचते हुए दो समूहों में युवा पिचकारी से पानी की बौछार करते हैं और एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं। हाथों में घोफन लिए, सुरक्षा के लिए ढाल लिए, पैरों में बंधे घुंघरुओं की झंकार के साथ वे इस तरह पत्थर बरसाते हैं कि दूसरी तरफ के लोग घायल हो जाते हैं और लहूलुहान हो जाते हैं।

सदियों पुरानी है परंपरा

इस गांव के लोगों का कहना है कि यह उनकी आपसी दुश्मनी से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा है, जो साल में केवल एक बार ही बुराइयों को जड़ से खत्म करती है, इसलिए इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए। शैक्षिक अभियानों से यह प्रथा पूरी तरह बंद तो नहीं हुई है, लेकिन थोड़ी कम जरूर हो गई है।

इसलिए खेली जाती है राड़ की होली

डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव के स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ के राजा ने किसी पाटीदार व्यक्ति को होली के दिन मृत्युदंड दे दिया था। मृतक की पत्नी उसके शव के साथ ही आग में जलकर सती हो गई। उसने मरते मरते श्राप दिया कि अगर अब से होली पर खून नहीं बहेगा तो धरती पर बड़ी आपदा आ जाएगी। इसी कारण से यहाँ हर साल होली पर पत्थर मार होली मनाई जाती है।