उर्दू में लिखी रामायण का पाठ होता है यहां, दर्शाता हैं हिन्दू-मुस्लिम एकता

हांलाकि दिवाली के त्योहार को आने में अभी बहुत समय हैं लेकिन दिवाली के त्योहार से जुड़े एक आयोजन के बारे में हम आपको बताना चाहते हैं जो हिन्दू-मुस्लिम एकता को दर्शाती हैं। जी हाँ, आज हम आपको राजस्थान के बीकानेर में दिवाली से पहले आयोजित होने वाले कार्यक्रम के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उर्दू में लिखी रामायण का पाठ होता है। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

यह कार्यक्रम पर्यटन लेखक संघ और महफिल-ए-अदब संस्था करती है। इस आयोजन के दौरान उर्दू में लिखी इस रामायण का पाठ किया जाता है। जानकारी के अनुसार, इस रामायण को वर्ष 1935 में लखनऊ के मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने बीकानेर में लिखी थी। उस वक्त यहां पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से अपनी मातृभाषा में कविता के रूप में रामायण लिखने की एक प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। उस वक्त मौलवी राणा बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह के यहां उर्दू-फारसी के फरमान अनुवाद किया करते थे।

इस रामायण को उर्दू में छंद में लिखी सबसे अच्छी रामायण माना जाता है। यह सिर्फ नौ पृष्ठों की है और इसमें 27 छंद है। हर छंद में छह-छह लाइनें हैं। कहा जाता है कि मौलवी राणा ने अपने कश्मीरी पंडित मित्र से रामायण के किस्से सुने थे। इसके आधार पर उन्होंने इस रामायण की रचना की। इससे पहले मौलवी ने रामायण नहीं सुनी थी। बाद में इस रामायण को प्रतियोगिता में भेजा गया, जहां इसे सबसे अच्छी रामायण मानते हुए गोल्ड मेडल से नवाजा गया। उस जमाने में महाराजा गंगा सिंह ने इसे आठवीं के कोर्स में शामिल किया था। बाद में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी इसे कोर्स में रखा, हालांकि अब नहीं है।