नवरात्रि के बाद 5 अक्टूबर को दशहरे का पावन पर्व आने वाला हैं जो कि असत्य पर सत्य की जीत को दर्शाता हैं। इस दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध किया गया था और उसी के संकेत सूचक के रूप में देशभर में हर साल दशहरा मनाते हुए रावण के पुतले का दहन किया जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां रावण की पूजा की जाती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां रावण दहन करना बड़ा पाप माना जाता हैं। हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित बैजनाथ की। इसके पीछे की कहानी बेहद रहस्यमयी हैं।
त्रेता युग में रावण ने शिवजी से अमरता का वरदान पाने के लिए घोर तपस्या की थी। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न होकर रावण को शिवलिंग दिया था जिसे आत्मलिंग बताया जाता है। इस शिवलिंग को देते हुए भगवान शंकर ने रावण से कहा था कि इसको लंका में स्थापित करना, लेकिन इस आत्मलिंग को जहां पर रख दोगे, वहीं स्थापित हो जाएगा। भगवान शिव ने कहा कि अगर तुम्हें अमर होना है, तो इसको लंका में ले जाकर स्थापित करना। इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर चल दिया, लेकिन देवता चाहते थे कि रावण अमर न हो। लेकिन भगवान विष्णु ने अपनी माया से शिवलिंक को रास्ते में रखवा दिया। दरअसल रावण को लघुशंका लगी और उसने शिवलिंग को एक गड़ेरिए को पकड़ा दिया, लेकिन गड़ेरिए ने शिवलिंग को नीचे रख दिया। इसके बाद रावण ने यहीं पर भगवान शिव की तपस्या से मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर अपने दस सिरों की हवन कुंड में डाला था। भगवान शिव का रावण परम भक्त था जिसकी वजह से यहां पर दशहरा नहीं मानाया जाता था। कहा जाता है कि एक बार कुछ लोगों ने शिव मंदिर के सामने दशहरा मनाना शुरू और रावण के पुतले को जलाया गया। ऐसा पांच साल तक चला, लेकिन रावण के रावण का पुतला जलाने वालों के साथ अनहोनी शुरू हो गई। कुछ लोगों की अगले दशहरे तक मौत हो गई। इसके बाद से लोगों ने दशहरा मनाना बंद कर दिया। लोगों का तर्क है कि भगवान शिव अपने सामने किसी अपने भक्त की हानि होते नहीं देख सकते हैं। इसलिए यहां पर रावण का पुतला जलाना पाप माना जाता है।