Ganesh Chaturthi 2018 :अष्टविनायकों में से एक श्री मयूरेश्वर गणपति मंदिर, जाना जाता है अपने चार दरवाजों के लिए

गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्दशी तक मनाया जाने वाला गणेशोत्सव पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। गणपति जी के अष्टविनायक मंदिरों में भी गणेशोत्सव का बड़ा महत्व होता हैं। इन्हीं अष्टविनायक मंदिरों में से एक प्रसिद्घ मंदिर है महाराष्ट्र के मोरगाँव का मयूरेश्वर गणपति मंदिर, जो अपने चार दरवाजों के लिए प्रसिद्द हैं। आज हम आपको इस मंदिर से जुडी जानकारी बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

मयूरेश्वर मंदिर मोरगाँव में स्थित है। यह अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है। मोरगाँव का नाम मोर के नाम पर पड़ा क्योंकि एक समय ऐसा था जब यह गाँव मोरों से भरा हुआ था। यह करहा नदी के किनारे स्थित है जो पुणे जिले के अंतर्गत आता है। यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। मोरेगांव गणेशजी की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।

इस मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में शिवजी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं स्थित है। नंदी और मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। मयूरेश्वर की मूर्ति यद्यपि आरम्भ में आकार में छोटी थी, परंतु दशक दर दशक इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह आजकल बड़ी दिखती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है जिसने यह अविनाशी हो गई है।

मान्यताओं के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था। गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था। इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मयूरेश्वर कहा जाता है।