कर्नाटक का यह गांव प्रवासी पक्षियों को मानता हैं बेटी की तरह, रखते हैं हर सुविधा का ख्याल

आपने अक्सर देखा होगा कि पालतू जानवरों का उनके मालिक बहुत ख्याल रखते हैं और परिवार के एक सदस्य के समान मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसे गांव के बारे में सुना हैं जो पक्षियों को अपनी बेटी के समान मानता हैं और उन्हें हर सुविधा प्रदान करता हैं। जी हां, बेंगलुरु के मांडया जिले का कोक्केरबेल्लुर गांव इसके लिए जाना जाता हैं और जिस तरह परंपरा के अनुसार बेटियां बच्चे के जन्म के लिए मायके आती हैं ठीक उसी तरह पेलिकन और पेंटेड स्टॉर्क जैसी प्रवासी पक्षी यहां आते हैं।

कोक्केरबेल्लुर में पेलिकन पक्षी अक्टूबर में ही आ गई हैं। करीब छह माह बाद यानी अप्रैल तक जब इनके बच्चे उड़ना और भोजन जुटाना सीख जाएंगे तो यह पक्षी वापस लौट जाएंगे। ठीक इसी प्रकार प्रवासी पक्षी पेंटेड स्टॉर्क भी दिसंबर से जुलाई तक यहां रहेंगे। पक्षियों और गांव वालों के बीच यह अनोखा रिश्ता करीब 200 साल और चार पीढ़ी से बना हुआ है। ये प्रवासी पक्षी धान की घास से घोंसला बनाते हैं, इसलिए गांव के लोग इन पक्षियों को रहने के लिए धान की घास अपनी छतों पर बिछा देते हैं।

यही नहीं कोक्केरबेल्लुर गांव के लोग इन फक्षियों को शुभ मानते हुए शादी से पहले यह जरूर देखते हैं कि जिस घर में उनके बच्चों का रिश्ता जुड़ रहा है, वहां घोंसला है या नहीं। प्रवासी पक्षियों और इनके बच्चों को रहने के लिए प्रशासन और गांव के लोग विशेष इंतजाम करते हैं। पेड़ से गिरकर इनके बच्चे घायल न हों, इसलिए पेड़ों के आसपास नेट लगाए गए हैं। कुछ साल पहले करंट से कई पक्षियों की मौत हो गई थी, इसलिए अब सभी बिजली के तारों को कवर कर दिया गया है।

जिस पेड़ पर इन पक्षी के बच्चे रहते हैं, उसके नीचे नीचे पशु बांधे जाते हैं, ताकि कोई जानवर पेड़ पर चढ़कर अंडों को नुकसान न पहुंचा सके। ये प्रवासी पक्षी भी गांव के लोगों के साथ रिश्ते को बखूबी निभाते हैं। बता दें कि यह गांव कुछ समय पहले एक किलाेमीटर दूर सिमसा नदी के तट पर था, लेकिन प्लेग की वजह से गांव ने अपना जगह बदल लिया। पक्षी भी गांव वालों के नए जगह पर आकर रहने लगी। बता दें कि पक्षियों का मुख्य भोजन मछली है, जिसके लिए अब उन्हें नदी तट तक उड़कर जाना पड़ता है।

कोक्केरबेल्लुर गांव कर्नाटक का एकमात्र क्कम्युनिटी रिजर्व है। इस गांव में आने वाले प्रवासी पक्षी भारत के अलावा ये श्रीलंका, कंबोडिया और थाईलैंड में पाए जाते हैं। जनवरी 2020 से इन पक्षियों की जीपीएस टैंगिंग होने जा रही है।