पिछले 100 सालों से 'जल' रहा भारत का ये शहर, वजह चौकाने वाली

भारत में एक ऐसा शहर है जो पिछले 100 सालों से धधक रहा है। प्राकृतिक कोयले के लिए विख्यात झारखंड का झरिया शहर पिछले सौ साल से लगी भूमिगत आग से धधक रहा है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस आग को बुझाने के प्रयास नहीं किए है लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। इस पर अब तक 2311 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इतना ही नहीं भूमिगत आग के कारण कोलियरियों के पास बसीं एक दर्जन बस्तियां खत्म हो चुकी है। दरअसल, यहां आग की शुरुआत 1916 में हुई थी, जब झरिया में अंडरग्राउंड माइनिंग होती थी। 1890 में अंग्रेजों ने इस शहर में कोयले की खोज की थी, तभी से झरिया में कोयले की खदानें बना दी गईं।

यहां पर रह रहे लोग अंगारों के बीच रहते हैं। उन्हें अपने भविष्य का पता नहीं है। इस आग का सबसे भयावह दृश्य तब सामने आता है जब जलते हुए कोयले को उठाकर ट्रकों पर डाला जाता है। झरिया शहर के आसपास उठ रही आग की लपटें और गैस-धुएं के गुबार यहां के हालात बयां कर रहे हैं। हालत यह हैं कि लिलोरीपाथरा गांव में कोयले की खदानों के ऊपर की जमीन पर आग की लपटें उठती रहती हैं।

पिछले सौ सालों से जल रही आग की वजह से यहां करीब 3 करोड़ 17 लाख टन कोयला जलकर राख हो चुका है जिसकी कीमत 10 अरब से अधिक बताई जा रही है। इसके बावजूद एक अरब 86 करोड़ टन कोयला यहां की खदानों में बचा हुआ है। जो धीरे-धीरे जल रहा है। इस आग को बुझाने का प्रयास 2008 में सरकार ने एक जर्मन कंपनी की सहायता से किया था। कंपनी ने जलते हुए कोयले को हटाने का प्रयास किया लेकिन सतह को क्षतिग्रस्त करने की वजह से इस तरीके की आलोचना हुई। इसके बाद गर्म कोयले को ठंडा करने के लिए जमीन के ऊपर पानी डालने का भी प्रयास किया गया लेकिन यह प्रयास भी असफल रहा। जानकारों का मानना है कि यह आग कभी भी नहीं बुझ सकती है बस इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।