यहां होली खेलने के लिए रंगों की जगह होता हैं चिता की राख और भस्म का इस्तेमाल!

होली का पावन पर्व रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाता हैं जिसमें सभी एक-दूसरे को रंग लगाकर होली मनाते हैं। कई लोग रंगों के साथ-साथ कई अन्य चीजों का इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी चिता की राख या भस्म से होली खेली हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसे कौन होली खेलता हैं तो हम आपको बता दें कि वाराणसी में इसका अनोखा नजारा देखने को मिलता हैं जहां महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच भगवान शंकर के गण चिता की राख और भस्म से होली खेलते हैं। मणिकर्णिका घाट के अलावा हरिश्चंद्र घाट पर भी चिता भस्म की होली खेली जाती हैं। इस दौरान औघड़ साधु संतो के अलावा बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहते हैं।

जी हाँ, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के बाद ये अनोखी होली खेली जाती है। आप सभी को बता दें कि होली के इस रंग में हर कोई रंग जाता है। यहाँ की होली को देखकर ऐसा लगता है मानो भगवान शंकर खुद इन औघड़दानियों के बीच मसान में होली खेल रहे हो। जी हाँ और इस अनोखी होली की मान्यता भी कुछ ऐसी ही है। कुछ परंपराओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के बाद बाबा विश्वनाथ अपने गण के साथ मसान में होली खेलते हैं।

मणिकर्णिका घाट पर स्थित महाश्मशान नाथ मंदिर में आरती और श्रृंगार से होली की शुरुआत की जाती है। वहीं बाबा श्मशान नाथ की आरती के बाद भक्त उनके साथ होली खेलते हैं और फिर मणिकर्णिका घाट पर रंग,गुलाल और भस्म से होली खेली जाती है। उसके बाद हजारों की संख्या में लोग यहां इकट्ठा होते हैं और होली के रंग में रंग जाते हैं।