नवरात्रि स्पेशल : यहाँ दिन में तीन बार बदलती है देवी माता की मूर्ति अपना रूप, जानें इस चमत्कारी मंदिर के बारे में

नवरात्रि का त्योहार चल रहा है, जो कि मातारानी को समर्पित हैं। सभी मातारानी के चमत्कारों से तो वाकिफ है ही, इसी के साथ ही मातारानी के मंदिर में चमत्कारों से भरपूर हैं। आज हम आपको मातारानी के ऐसे ही एक अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ देवी माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। हम बात कर रहे हैं धारी देवी के मंदिर के बारे में। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

उत्तराखंड में बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव श्रीनगर से मात्र 15 किमी की दूरी पर स्थित चमत्कारिक इस मंदिर में देवी मां दिन में तीन बार रूप बदलती हैं। देवी मां देवभूमि उत्तराखंड की रक्षक के रूप में जानी जाती हैं। अलकनंदा नदी के तट पर स्थित सिद्धपीठ मां धारी देवी के मंदिर में रोजाना यह चमत्कार होता है।

कहते हैं यहीं मां काली की कृपा से महाकवि कालिदास को ज्ञान मिला था। शक्ति पीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में मिलता है। मान्यता है कि कालीमठ मंदिर से ही मूर्ति का सिर वाला भाग बाढ़ से अलकनंदा नदी में बहकर धारी गांव नामक स्थान पर आ गया। गांव की धुनार जाति व स्थानीय ग्रामीणों ने मिलकर सिर वाले भाग को समीपवर्ती ऊंची चट्टान पर स्थापित किया।धारी गांव के पांडे ब्राहमण मंदिर के पुजारी हैं। मां काली कल्याणी की यह मूर्ति वर्तमान में अलकनंदा नदी पर जल-विद्युत परियोजना के निर्माण के चलते नदी से ऊपर मंदिर बनाकर स्थापित की गई है।

जनश्रुति है कि यहां मां काली प्रतिदिन तीन रूप बदलती है। वह प्रात:काल कन्या, दोपहर में युवती व शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए मंदिर में आते हैं। इसके अलावा चारधाम यात्रा के दौरान भी हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। उत्तराखंड के लोग इस पहाड़ों वाली मां को बहुत मानते हैं। लोगों का आरोप है कि उत्तराखंड सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी और देवी माता के मंदिर को तोड़ दिया। पहाड़ी बुजुर्गों के अनुसार उत्तराखंड में समय-समय पर आने वाली विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना ही है। ये प्रत्यक्ष रूप से देवी का प्रकोप है।

पहाड़ के लोगों में यह मान्यता है कि पहाड़ के देवी-देवता नाराज हो जाते हैं और अपनी शक्ति से कैसी भी विनाशलीला रच डालते हैं। 16 जून 2013 को जब केदारनाथ में रात लगभग आठ बजे जल प्रलय आया था, उससे पहले शाम छह बजे मां धारी की मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाया गया था। स्थानीय लोगों की चेतावनी के बावजूद धारी देवी की इस मूर्ति को श्रीनगर विद्युत परियोजना के तहत 16 जून को हटा दिया गया और तुरंत ही उसी रात को एक ग्लेशियर टूटा, बादल फटा और प्रकृति की विनाशलीला शुरू हो गई। 17 जून को पूरे उत्तराखंड में इस विनाशलीला से हाहाकार मच गया।

मां धारी देवी को दक्षिणी काली माता भी कहते हैं। मान्यता अनुसार देवी मां उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है। इन्हें पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। महा विकराल इस काली देवी की मूर्ति स्थापना और मंदिर निर्माण की भी रोचक कहानी है। यह मूर्ति जाग्रत और साक्षात है।