भीलवाड़ा: अरावली पर्वतमाला के मुद्दे पर पूर्व खान मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता कालू लाल गुर्जर ने विपक्ष पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा विवाद पूरी तरह से सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिश है। जबकि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही साफ कर चुकी हैं कि अरावली क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन नहीं होने दिया जाएगा। गुर्जर ने दावा किया कि अरावली में खनन की लीजें कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में दी गई थीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार में खान मंत्री बनने के बाद उन्होंने स्वयं अरावली क्षेत्र में खनन पर रोक लगाने का निर्णय लिया था।
‘बीजेपी शासन आते ही याद आई अरावली’पूर्व मंत्री कालू लाल गुर्जर ने कहा कि कांग्रेस द्वारा आज अरावली को लेकर किया जा रहा विरोध आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की स्थिति बिल्कुल वैसी ही है जैसे कहावत में कहा जाता है—‘सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’। जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब अरावली में धड़ल्ले से खनन हुआ और उस समय पर्यावरण की कोई चिंता नजर नहीं आई। अब भाजपा की सरकार बनी तो अचानक अरावली पर्वतमाला याद आ गई। गुर्जर ने बताया कि वर्ष 1990 में जब वे पहली बार खान मंत्री बने थे, तब प्रदेश में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी।
‘तब सामने आई थी अंतरराष्ट्रीय साजिश’उन्होंने कहा कि उस दौर में भी कांग्रेस और कम्युनिस्ट दलों ने मिलकर एक सोची-समझी रणनीति के तहत एनजीओ खड़े किए और यह प्रचार किया गया कि अरावली में खनन नहीं होना चाहिए। बाद में भारत सरकार और राजस्थान सरकार द्वारा कराई गई जांच में यह स्पष्ट हुआ कि यह एक सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय साजिश थी। गुर्जर का आरोप था कि कुछ विदेशी ताकतें और उनके सहयोगी भारत के विकास को रोकना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उस समय वे माइनिंग मिनिस्टर थे और उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि अरावली में किसी भी कीमत पर खनन नहीं होगा।
पूर्व मंत्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि जयपुर में झालाना की पहाड़ियों के नाम से जो कटा हुआ पहाड़ दिखता था, उसे उन्होंने मंत्री रहते हुए अरावली की श्रेणी में शामिल करवाया और वहां चल रहे खनन को तत्काल बंद कराया। इसके बाद पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए वहां व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण कराया गया, ताकि अरावली को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे।
‘अरावली को रोक देंगे तो रुक जाएगा राजस्थान का विकास’कालू लाल गुर्जर ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यह फैसला किसी राजनेता या खनन कारोबारी के हित में नहीं है। उन्होंने दोहराया कि अरावली क्षेत्र में खनन न हो, इसके लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लेकिन अरावली के अलावा जो छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं, जहां फेल्सपार और सोडा जैसे खनिज निकलते हैं, यदि उन्हें भी अरावली की श्रेणी में डाल दिया गया तो राजस्थान का विकास पूरी तरह ठप हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र सिंह यादव भी स्पष्ट कर चुके हैं कि अरावली पर्वतमाला को कोई छू नहीं सकता। इसके बावजूद सरकार के खिलाफ गलत माहौल बनाया जा रहा है। पर्यावरण के नाम पर लोगों को गुमराह कर आंदोलन खड़ा करना उचित नहीं है। पूर्व मंत्री ने राजसमंद जिले के केलवा गांव का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां खनन की लीज कांग्रेस शासन में दी गई थी और आज वहां केवल पत्थर की गढ़ शेष रह गई है।
‘अरावली सुरक्षित रहे, लेकिन विकास भी जरूरी’कालू लाल गुर्जर ने अपने व्यक्तिगत विचार रखते हुए कहा कि अरावली पर्वतमाला को पूरी तरह संरक्षित किया जाना चाहिए और वहां किसी भी प्रकार का खनन आवंटन नहीं होना चाहिए। हालांकि, अरावली से इतर बिखरी हुई पहाड़ियों पर खनन की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि राजस्थान का विकास खनिज संसाधनों पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि यदि दुनिया के अन्य देशों से तुलना करें तो वहां बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है। पहले भारत खनिज आयात करता था, लेकिन अब निर्यातक बन चुका है।
उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी दल अरावली का नाम लेकर हर तरह के खनन का विरोध कर रहे हैं, जो सीधे तौर पर विकास को बाधित करने वाला कदम है। गुर्जर ने कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है, लेकिन विकास को पूरी तरह रोक देना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है।