नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। कोर्ट अब इस संवेदनशील मामले के लिए एक विशेष पीठ (Special Bench) का गठन करेगा, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई शामिल नहीं होंगे। यह कदम जस्टिस वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों और संसद में उनके खिलाफ दाखिल महाभियोग प्रस्ताव की पृष्ठभूमि में उठाया गया है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा की ओर से यह मामला चीफ जस्टिस के सामने रखा। उनके साथ वकील मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी और सिद्धार्थ लूथरा भी याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित थे।
सिब्बल ने कहा: “इस याचिका में कई संवैधानिक पहलू हैं। हम निवेदन करते हैं कि शीघ्र सुनवाई के लिए विशेष बेंच बनाई जाए।” सीजेआई गवई ने सिब्बल की बात स्वीकार करते हुए कहा कि एक उपयुक्त विशेष पीठ बनाई जाएगी, जिसमें वह स्वयं शामिल नहीं होंगे। सुनवाई की तिथि बेंच गठन के बाद जल्द घोषित की जाएगी।
63 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभापति को वर्मा को हटाने का प्रस्ताव सौंपाविभिन्न विपक्षी दलों के 63 राज्यसभा सांसदों ने सोमवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए सभापति को प्रस्ताव का नोटिस सौंपा। कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ यह नोटिस सौंपा गया था। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोमवार को इसकी जानकारी दी थी।
न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने के लिए इसी तरह का प्रस्ताव 13 दिसंबर, 2024 को राज्यसभा के सभापति को सौंपा गया था। इससे पहले संसद के मानसून सत्र का आगाज होते ही 145 लोकसभा सांसदों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा स्पीकर को ज्ञापन सौंपा। सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत यह कदम उठाया है।
गौरतलब है कि 15 मार्च 2025 को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर कैश मिला था। इसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन्होंने आरोपों से इनकार किया और उसे साजिश बताया था। जले और अधजले नोटों का एक वीडियो भी बहुत वायरल हुआ था।
हालांकि, अब इस मामले की गंभीरता को देखते हुए संसद इन आरोपों की जांच करेगी। महाभियोग प्रस्ताव के तहत आगे की प्रक्रिया संसद में विचार-विमर्श और जांच के बाद तय की जाएगी। इस घटना ने न्यायिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया था। इसने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को भी तत्काल कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। 5 अप्रैल को जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की थी।