चार दशक की फरारी खत्म: आखिरकार गिरफ्त में आया बैंक धोखाधड़ी का दोषी, 1977 में की थी 5.69 लाख की ठगी

देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने एक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार किया है, जो पूरे 40 वर्षों तक कानून की आंखों में धूल झोंकता रहा। यह मामला है सतीश कुमार आनंद का, जिसे बैंक ऑफ इंडिया से 5.69 लाख रुपये की धोखाधड़ी के मामले में 1985 में दोषी करार दिया गया था। इतने लंबे समय तक फरार रहने वाले आनंद को अब दिल्ली के रोहिणी इलाके से दबोचा गया है।

1977 में हुई थी बैंक को ठगने की साजिश

पूरा मामला 1977 का है जब बैंक ऑफ इंडिया की एक शाखा में धोखाधड़ी की एक सोची-समझी साजिश रची गई। आरोप था कि तत्कालीन शाखा प्रबंधक और आनंद ने मिलकर एक निजी कंपनी के नाम पर जाली रसीदें जमा कर बैंक से ऋण हासिल किया। इन बिलों में झूठे लेन-देन दिखाए गए, और माल की आपूर्ति की कोई वास्तविकता नहीं थी। नतीजतन, बैंक को 5.69 लाख रुपये का नुकसान हुआ जबकि आनंद को इसका वित्तीय लाभ मिला।

तीन पर केस, दो को सजा, एक हुआ बरी

इस पूरे घोटाले को लेकर सीबीआई ने 5 मई 1978 को एक मामला दर्ज किया। आरोपियों में बैंक के शाखा प्रबंधक, सतीश कुमार आनंद और अशोक कुमार शामिल थे। देहरादून में सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 19 जून 1985 को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने बैंक शाखा प्रबंधक को संदेह के लाभ में बरी कर दिया, लेकिन आनंद और अशोक कुमार को दोषी ठहराते हुए पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

सजा के बाद फरार, 2009 में घोषित हुआ भगोड़ा

सजा सुनाए जाने के बाद ही सतीश आनंद फरार हो गया और चार दशकों तक विभिन्न ठिकानों पर रहकर जांच एजेंसियों से बचता रहा। अदालत ने जब उसे कई बार पेश करने की कोशिश की और वह अनुपस्थित रहा, तो आखिरकार 30 नवंबर 2009 को उसे भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया।

मोबाइल नंबर ने खोला राज, बेटे की पहचान से मिला सुराग


सीबीआई को आखिरकार एक ठोस सुराग तब मिला जब उन्हें एक मोबाइल नंबर हाथ लगा, जो आनंद के बेटे के नाम से पंजीकृत था। इस नंबर की ट्रैकिंग करते हुए एजेंसी आनंद तक पहुंच गई और उत्तरी दिल्ली के रोहिणी इलाके से उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

देहरादून में पेशी, न्यायिक हिरासत में भेजा गया

गिरफ्तारी के तुरंत बाद सतीश कुमार आनंद को उत्तराखंड के देहरादून लाया गया, जहां उसे विशेष सीबीआई अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।

ईडी ने भी दर्ज किया है मनी लॉन्ड्रिंग का मामला

इस बैंक धोखाधड़ी केस के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धाराओं के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया है। यानी अब आनंद को सीबीआई के साथ-साथ ईडी की पूछताछ और अदालती प्रक्रिया का भी सामना करना पड़ेगा।

कानून से नहीं बच सका अपराध

सतीश कुमार आनंद की यह गिरफ्तारी यह दर्शाती है कि भले ही न्याय की प्रक्रिया धीमी हो, लेकिन कानून का शिकंजा इतना मजबूत है कि वह आखिरकार अपराधियों को पकड़ ही लेता है। चार दशकों की फरारी के बावजूद सतीश की गिरफ्तारी इस बात का प्रमाण है कि कानून से कोई बच नहीं सकता।