इंस्पेक्टर पति ने कोरोना काल में पेश की मिसाल, पत्नी की मौत के बाद भी फर्ज को रखा ऊपर

कोरोना महामारी में कई लोगों ने अपने प्रियजनों और सगे सम्बन्धियों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते हुए भी देखा है। अपने प्रियजनों को खोने के बाद कई लोग पूरी तरह टूट चुके है वहीं संगम नगरी प्रयागराज में यूपी पुलिस के एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जो कोरोना की महामारी के चलते अपनी पत्नी और सगी भाभी को खोने के बाद भी अपना फर्ज निभा रहे हैं। यूपी पुलिस के इस अधिकारी की आज पूरे प्रयागराज में चर्चा हो रही है। उन्होंने कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के चलते अपनी पत्नी और भाभी का अंतिम संस्कार तो किया लेकिन तेरहवीं का कार्यक्रम दो माह तक के लिए स्थगित कर दिया। वह 6 दिन में ही बच्चों की आंखों के आंसू पोछते हुए हुए खाकी का फर्ज निभाने अपनी ड्यूटी पर भी वापस लौट आए हैं। उनके इस हौसले को लेकर पुलिस के आलाधिकारी भी बेहद भावुक हैं और उनकी जमकर सराहना भी कर रहे हैं।

प्रयागराज जिले की कोतवाली में इंस्पेक्टर नरेन्द्र प्रसाद मूल रुप से मऊ जिले के रहने वाले हैं। नरेन्द्र प्रसाद 1998 में यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर चयनित हुए थे। 23 वर्षों की नौकरी में कई जिलों में सेवायें दे चुके हैं। लेकिन कोरोना की इस महामारी में इन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। नरेन्द्र प्रसाद की पत्नी मालती देवी और भाभी उर्मिला देवी दोनों कोविड संक्रमित हो गयीं थी। जिसके बाद ऑक्सीजन लेवल कम होने पर उन्होंने दोनों को एसआरएन अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया। लेकिन इस इलाज के दौरान 21 अप्रैल को इंस्पेक्टर नरेन्द्र प्रसाद की भाभी उर्मिला देवी की मौत हो गई। इस बीच नरेन्द्र प्रसाद की भाभी के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी तभी अगले दिन 22 अप्रैल को कोरोना से उनकी पत्नी की मौत हो गई।

परिवार में दो-दो मौतों के बाद नरेन्द्र प्रसाद पूरी तरह से टूट चुके थे लेकिन एक पुलिस कर्मी होने के नाते उन्होंने हिम्मत और साहस से काम लिया। सबसे पहले उन्होंने भाभी और पत्नी का अंतिम संस्कार किया फिर बच्चों को संभाला। उनका बड़ा बेटा जहां चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी मेरठ से एमएससी एग्रीकल्चर कर रहा है। वहीं छोटा बेटा आईआईटी खड़गपुर से माइनिंग में बीटेक कर रहा है। उन्होंने बच्चों को आगे पढ़ाई जारी रखने और कैरियर बनाने के लिए समझाया। वहीं खुद भी कर्म पथ पर आगे बढ़ने के लिए खुद को मजबूत कर लिया है। नरेन्द्र प्रसाद के लिए यह बेहद कठिन समय था, लेकिन उन्होंने त्रयोदशी संस्कार करने के बजाय कोरोना के संक्रमण को देखते हुए क्रिया कर्म के बाद तेरहवीं को दो माह के लिए स्थगित कर दिया।

वे खुद भी छह दिन में ही 28 अप्रैल को फर्ज निभाने के लिए ड्यूटी पर लौट आये और फिर से जनता की सेवा में जुट गए हैं। उनका कहना है कि कोरोना की महामारी से वे अपनी पत्नी और भाभी को तो नहीं बचा सके। लेकिन हो सकता है कि ड्यूटी पर रहते हुए कुछ लोगों की मदद कर सकें। जिससे लोगों की जान भी बचायी जा सके। उनके मुताबिक उन्होंने इस महामारी में पत्नी और भाभी समेत अपने छह करीबियों को खोया है इसलिए वे इस महामारी से हो रही मौतों के दर्द को भी बखूबी समझते हैं। वहीं वर्दी का फर्ज निभाने वाले इस खाकी में छिपे इंसान के चर्चे पूरे शहर भर में हो रहे हैं।