
कर्नाटक सरकार द्वारा समृद्ध मंदिरों पर टैक्स लगाने के लिए लाया गया कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक 2024 अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है। यह निर्णय तब लिया गया जब राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने विधेयक को स्पष्टीकरण के लिए वापस लौटा दिया था।
यह विधेयक इस साल विधानसभा और विधान परिषद दोनों में पारित हो चुका है, लेकिन मार्च से ही लंबित था। अब सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद, जिसमें राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय की गई है, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा गया है। राष्ट्रपति को अब इस पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने का समय मिलेगा।
क्या है बिल का उद्देश्य?
इस विधेयक के तहत:
• ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक की वार्षिक आय वाले मंदिरों पर 5% टैक्स और
• ₹1 करोड़ से अधिक कमाने वाले मंदिरों पर 10% टैक्स लगाया जाएगा।
सरकार का कहना है कि इस कर से मिलने वाली राशि को एक संविलियन कोष (Consolidated Fund) में डाला जाएगा और इसका उपयोग:
• आर्थिक रूप से कमजोर मंदिरों की मदद,
• छोटे मंदिरों के रखरखाव,
• गरीब पुजारियों की सहायता,
• उनके बच्चों की शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए किया जाएगा।
यह भी कहा गया है कि इससे ‘C श्रेणी’ के मंदिर, जिनकी सालाना आय ₹5 लाख से कम है, उन्हें स्थिर वित्तीय सहायता मिल सकेगी।
विपक्ष का विरोधविपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस बिल का कड़ा विरोध करते हुए इसे हिंदू विरोधी करार दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र येदियुरप्पा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार इस कानून के जरिए अपनी खाली खजाने को भरना चाहती है।
बीजेपी का यह भी सवाल है कि केवल हिंदू मंदिरों से ही टैक्स क्यों वसूला जा रहा है, जबकि अन्य धर्मस्थलों को इससे बाहर क्यों रखा गया है।