वर्तमान समय में गौरक्षा का मुद्दा पूर्ण रूप से राजनीतिक रंग ले चुका है। देश में गौरक्षा के नाम पर कई हत्याएं हुई हैं, जो कि अनैतिक और कानून के विरूद्ध होने वाली घटनाएं हैं। देश में गोरक्षा के नाम पर मुसलमानों और दलितों को निशाना बनाया जा रहा है। जो कि इस देश की एकता को तोड़ने का काम करती हैं। यहाँ तक कि गांधीजी ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन के आगाज के समय दी गए अपने भाषण में गाय के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्ति की थी। तो आइये जानते हैं बापू के गाय के प्रति उन विचारों को।
गांधी जी ने कहा था कि मैं गौ पूजक हूं। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि आज मैं मुसलमानों के लिए शैतान और अरुचिकर हो गया। क्या खिलाफत आंदोलन की हिंदू-मुस्लिम एकता मैंने किसी फरसे के जोर पर हासिल की थी। सच्चाई यह है कि मेरा अंतरात्मा कहती है कि ऐसा करने से मैं गोरक्षा भी कर सकूंगा। गांधी जी ने कहा था कि मैं यह मानता हूं कि मैं और गाय एक ही ईश्वर की संतान हैं।
गायों के प्राणों की रक्षा के लिए मैं अपने प्राण न्योछावार करने को तैयार हूं। उन्होंने कहा कि आज अली बंधु जीवित होते तो वे मेरी बात की सच्चाई के सबूत देते और बहुत से लोग यह भी बताते की मैंने यह काम गाय का जीवन बचाने के लिए मोलभाव के तौर पर नहीं किया था। गाय और खिलाफत दोनों का महत्व उनके अपने गुणों के आधार पर है।
बापू ने अपने भाषण में जहां खुद को सच्चा गौरक्षक बताया तो वहीं मोहम्मद अली जिन्ना के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग किया था। उन्होंने खुद को दलित रक्षक बताते हुए दलित हितों के लिए काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई थी।