15 जुलाई को होगी चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग, सफर के दौरन करना होगा इन 7 चुनौतियों का सामना

इसरो ने मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग की तारीख का ऐलान किया है। चांद पर जाने को तैयार भारत का स्पेस मिशन चंद्रयान-2 15 जुलाई 2019 को सुबह 2 बजकर 51 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा। बुधवार को इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने बताया कि हमारे लिए इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है चंद्रमा की सतह पर सफल और सुरक्षित लैंडिंग कराना। चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे आएगा। उसे चंद्रमा की सतह पर आने में करीब 15 मिनट लगेंगे। यह 15 मिनट इसरो के लिए बेहद कठिन होगा। क्योंकि इसरो पहली बार ऐसा मिशन करने जा रहा है। सिवान ने बेंगलुरु में इस मिशन से जुड़ी जानकारी के लिए वेबसाइट का लॉन्च भी किया।

इसरो चेयरमैन ने जानकारी दी कि चंद्रयान-2 को 15 जुलाई सुबह 2 बजकर 51 मिनट पर प्रक्षेपित किया जाएगा। इसमें तीन हिस्से होंगे- लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर। रोवर एक रोबॉटिक आर्टिकल है जिसका वजन 27 किलो और लंबाई 1 मीटर है। लैंडर का वजन 1.4 टन और लंबाई 3.5 मीटर है। ऑर्बिटर का वजन 2.4 टन और लंबाई 2.5 मीटर है।

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा। इसमें 8 पेलोड हैं। साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था।

लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसमें 4 पेलोड हैं। यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था। बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया।

इन 7 चुनौतियों का करना होगा चंद्रयान-2 को सामना

पहली चुनौतीः सटीक रास्ते पर ले जाना


लॉन्च के समय धरती से चांद की दूरी करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी होगी। इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना। क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती, चांद और रास्ते में आने वाली अन्य वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा।

दूसरी चुनौतीः गहरे अंतरिक्ष में संचार

धरती से ज्यादा दूरी होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचेंगे। देरी से जवाब मिलेगा। साथ ही अंतरिक्ष में होने वाली आवाज भी संचार में बाधा पहुचांएंगे।

तीसरी चुनौतीः चांद की कक्षा में पहुंचना

चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाना आसान नहीं होगा। लगातार बदलते ऑर्बिटल मूवमेंट की वजह से चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाने के लिए अत्यधिक सटीकता की जरूरत होगी। इसमें काफी ईंधन खर्च होगा। सही कक्षा में पहुंचने पर ही तय जगह पर लैंडिंग हो पाएगी।

चौथी चुनौतीः चांद की कक्षा में घूमना

चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा। इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी बराबर नहीं है। इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है। इसलिए, चांद की ग्रैविटी और वातावरण की भी बारीकी से गणना करनी होगी।

पांचवीं चुनौतीः चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग

इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर चंद्रयान-2 को रोवर और लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है। चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा। ये सभी काम ऑटोमैटिकली होंगी।

छठीं चुनौतीः चंद्रमा की धूल

चांद की सतह पर ढेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है। जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी। धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई बाधित हो सकती है। ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसर्स पर असर पड़ सकता है।

सातवीं चुनौतीः बदलता तापमान

चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है। इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है। इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी।

मिशन कितने दिनों का

ऑर्बिटर- 1 साल, लैंडर (विक्रम)- 15 दिन, रोवर (प्रज्ञान)- 15 दिन

मिशन का कुल वजनः 3877 किलो

ऑर्बिटर- 2379 किलो, लैंडर (विक्रम)- 1471 किलो, रोवर (प्रज्ञान)- 27 किलो