
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की उस याचिका पर तत्काल फैसला सुनाने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने 2011 के भूमि डिनोटिफिकेशन मामले को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि यह मामला ऐसे कानूनी प्रश्नों से जुड़ा है, जिन पर पहले से ही एक बड़ी पीठ द्वारा विचार किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति जेबी पारडीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले में फैसला सुनाने वाली थी, जो येदियुरप्पा के उपमुख्यमंत्री रहते हुए कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ा है। लेकिन सुनवाई के दौरान पीठ को पता चला कि 'शमिन खान बनाम देबाशीष चक्रवर्ती व अन्य' मामले में समान कानूनी प्रश्नों को लेकर 16 अप्रैल 2024 को एक आदेश जारी हुआ है, जिसमें इन्हीं मुद्दों को बड़ी पीठ को सौंपा गया है।
पीठ ने कहा, “न्यायिक अनुशासन के हित में हम इन याचिकाओं को उस मामले के साथ जोड़ना उचित समझते हैं।” इसके बाद अदालत ने मामला भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) के पास भेजने के निर्देश दिए, ताकि वे आगे की सुनवाई के लिए आदेश जारी करें।
यह मामला 2006 में बेंगलुरु उत्तर तालुक में कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड (KIADB) द्वारा अधिग्रहित भूमि को अवैध रूप से डिनोटिफाई करने के आरोपों से जुड़ा है। आरोप है कि येदियुरप्पा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उस ज़मीन को डिनोटिफाई किया, जिससे हार्डवेयर पार्क की योजना प्रभावित हुई और राज्य सरकार को करोड़ों रुपये की क्षति हुई।
शिकायतकर्ता आलम पाशा का कहना था कि इससे सेवा और विकास शुल्क में भारी छूट दी गई, जिससे राज्य को आर्थिक नुकसान पहुंचा।
इस मामले में पुलिस ने 2012 में नौ सह-आरोपियों के खिलाफ आरोप हटा दिए थे, लेकिन येदियुरप्पा और उस समय के उद्योग मंत्री कट्टा सुब्रमण्या नायडू को आरोपी बनाया गया। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की कमी के आधार पर मामला खारिज कर दिया था।
इसके खिलाफ पाशा ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की, जिसने 2021 में ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए मुकदमे की पुनः सुनवाई के आदेश दिए। इसके बाद येदियुरप्पा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
मामले की सुनवाई के दौरान एक अहम सवाल यह भी रहा कि क्या 1988 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में 2018 में किए गए संशोधन के बाद किसी पूर्व पदाधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की पूर्व अनुमति अनिवार्य है या नहीं।
येदियुरप्पा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी कि दोनों शिकायतें एक ही तथ्य पर आधारित थीं, और हाईकोर्ट ने 2015 के मामले को तकनीकी आधार पर खारिज किया, जबकि इसकी सामग्री पर विचार किया जाना चाहिए था।
2023 में हाईकोर्ट ने CAG रिपोर्ट पर आधारित उस 2015 के मामले को खारिज कर दिया था, जिसमें येदियुरप्पा पर पद के दुरुपयोग का आरोप था। अदालत ने कहा था कि पहले से चल रहे समान आरोपों के आधार पर दोबारा मामला नहीं बनता, और केवल CAG रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।