नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के 2020 के आदेश के बावजूद पूर्वोत्तर राज्यों नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और असम में परिसीमन की प्रक्रिया में देरी पर सवाल उठाया है, जिसमें पहले के स्थगन आदेशों को रद्द कर दिया गया था।
मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र से पूछा कि इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए क्या किया गया, यह देखते हुए कि राष्ट्रपति के आदेश को 4 साल हो चुके थे, जिसे उन्होंने प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त माना।
न्यायालय ने केन्द्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज से कहा कि परिसीमन एक वैधानिक कार्य है और इसे किया जाना ही होगा।
न्यायालय ने उनसे इस मुद्दे पर निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा तथा ऐसा करने के लिए उन्हें और समय दिया और तदनुसार मामले को जनवरी 2025 तक स्थगित कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को बताया कि असम में पिछले वर्ष परिसीमन हुआ था, जबकि अन्य तीन राज्यों में यह कार्य अभी शुरू होना है।
इसके जवाब में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के लिए परामर्श जारी है, लेकिन मणिपुर में जातीय हिंसा के मद्देनजर स्थिति अनुकूल नहीं हो सकती है।
निर्वाचन आयोग की ओर से परिसीमन शुरू करने का अनुरोध किया गया। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत केंद्र से निर्देश प्राप्त करना आवश्यक है, जिसमें असम का उल्लेख किया गया है, जहां ऐसे निर्देश जारी किए गए थे। अदालत इन राज्यों में परिसीमन प्रक्रिया को तत्काल लागू करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर विचार कर रही थी।