कारगिल विजय दिवस : ‘साइलेंट मूवमेंट’ बनी थी इस युद्ध ने जीत की खास ट्रिक

हर साल 26 जुलाई का दिन कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर पाकिस्तानी सेना को भारतीय सरजमीं से खदेड़ा था। हांलाकि इस जंग में देश के 527 जवान भी शहीद हुए थे जो आज तक हर हिन्दुस्तानी के दिल में जिंदा हैं। भारतीय सेंइकों द्वारा यह युद्ध बहुत परेशानियों में लड़ा गया था क्योंकि दुश्मन द्वारा ऊपर से भारतीय फ़ौज की हर गतिविधि पर पूरी नजर थी। ऐसे में इस मुश्किल काम को अंजाम देने के लिए भारतीय फ़ौज द्वारा एक रणनीति बनाई गई थी जो इस जीत की एक वजह बनी थी। ये ट्रिक कुछ और नहीं, बल्कि एक खास ट्रेनिंग थी, साइलेंट मूवमेंट। इन मुश्किल हालात से निपटने के लिए भारतीय सेना ने युद्ध में एक खास रणनीति ‘साइलेंट मूवमेंट’ का इस्तेमाल किया। जवानों व अफसरों को युद्धक्षेत्र में जाने से पहले बाकायदा साइंलेंट ड्रिल भी करवाई गई थी।

पहाड़ों पर दुश्मन की ओर बढ़ते हुए इस इस ‘साइलेंट मूवमेंट’ में जवानों व अफसरों को गोली लगने के बाद घायलावस्था में कराहने तक की इजाजत नहीं थी। आंखों की भाषा को समझकर आगे बढ़ते हुए दुश्मन के बंकरों को ढूंढ कर उन पर हमला बोलना था ताकि दुश्मन को संभलने और फायरिंग का मौका ही न मिले। भारतीय सेना की ये रणनीति कई मोर्चों पर कारगर साबित हुई।

दरअसल, दुश्मन एलओसी की ऊंची पहाड़ियों पर भारतीय जमीन पर कब्जा करके बैठा था और नीचे भारतीय फौज को दुश्मन को खत्म करके जमीन वापस लेने का टास्क दिया गया था। कई सैन्य पलटनों को एलओसी के विभिन्न मोर्चों पर पाकिस्तानी फौज से लोहा लेना था। लेकिन मुश्किल यह थी कि ऊपर बैठा दुश्मन नीचे भारतीय फौज की मूवमेंट देख पा रहा था।

भारतीय जवानों और अफसरों को ऊपर चोटियों पर छिपे न तो पाकिस्तानी दिख रहे थे और न ही उनके बंकर। इसके लिए ही यह साइलेंट रणनीति अपनाई गई और ऊपर-नीचे की मुश्किल स्थिति को भेद कर दुश्मन का खात्मा किया गया। ऐसे में एलओसी की दुर्गम परिस्थितियों में लड़ा गया 1999 का कारगिल युद्ध दो देशों के बीच एक दुर्लभ सशस्त्र लड़ाई थी।