1984 सिख विरोधी दंगा : कोर्ट नहीं पहुंचे सज्‍जन कुमार के वकील, सुनवाई स्‍थगित, एचएस फुल्‍का ने पीड़‍ितों को दी ये सलाह

1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में सज्‍जन कुमार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। हाई कोर्ट से एक मामले में दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा पाने वाले सज्‍जन कुमार गुरुवार को एक अन्‍य मामले में पटियाला हाउस कोर्ट में पेश हुए। हालांकि उनके वकील नहीं पहुंच पाए, जिसके कारण मामले की सुनवाई स्‍थगित कर दी गई। दिल्ली की एक अदालत ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ 1984 के सिख विरोधी दंगे मामले की सुनवाई 22 जनवरी तक टाल दी। सज्जन कुमार के खिलाफ यह मामला नवंबर 1984 में सुल्तानपुरी में 16 की हत्या का है। जबकि इससे पहले दिल्ली कैंट में हुई हिंसा में 5 लोगों की हत्या के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुना चुका है। सज्‍जन कुमार के वकील अनिल शर्मा इस मामले में गवाहों से पूछताछ करने वाले थे, लेकिन वह खुद कोर्ट नहीं पहुंचे, जिसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई 22 जनवरी तक के लिए स्‍थगित कर दी।

मृत्यु तक आजीवन कारावास की सज़ा मृत्युदंड से बेहतर सज़ा है

इससे पहले 17 दिसंबर को दिल्‍ली हाई कोर्ट ने सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक अन्‍य मामले में सज्‍जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, पीड़ित पक्षों की मांग है कि सज्जन कुमार को उम्रकैद नहीं, बल्कि फांसी की सजा हो। इस पर पीड़ितों के वकील एचएस फुल्का की अपनी एक अलग दलील है। वर्ष 1984 के सिख-विरोधी दंगों से जुड़े केस के वकील एचएस फुल्का का कहना है, "मैंने पीड़ितों को सुझाव दिया है कि सुप्रीम कोर्ट में न जाएं, क्योंकि यदि दोनों पक्ष अपील फाइल करते हैं, तो कोर्ट विस्तार से सुनवाई करेगा। इसके स्थान पर हमें सज्जन कुमार की अपील को जल्द से जल्द खारिज किए जाने पर ज़ोर देना चाहिए। मृत्यु तक आजीवन कारावास की सज़ा मृत्युदंड से बेहतर सज़ा है।"

सिख विरोधी दंगा के पीड़ितों को न्‍याय दिलाने के लिए लंबी जंग लड़ने वाले फुल्‍का ने उन्‍हें सज्‍जन कुमार को मृत्‍युदंड देने की मांग करने वाली याचिका दायर करने की बजाय हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता की याचिका को निरस्‍त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पीटिशन देने की सलाह दी है।

उन्‍होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट में याचिका (मृत्‍युदंड के लिए) दायर करने की बजाय हमें जल्‍द से जल्‍द सज्‍जन कुमार की अपील खारिज करने के लिए दबाव बनाना चाहिए।' उन्‍होंने आजीवन कारावास की सजा को मृत्‍युदंड से बेहतर बताया।

क्यों हुए थे दंगे?

1984 में इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। जिसके बाद देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। कहा जाता रहा है कि कांग्रेस पार्टी के कुछ कार्यकर्ता इसमें सक्रिय रूप से शामिल थे। इंदिरा गांधी की हत्या सिखों के एक अलगाववादी गुट ने उनके द्वारा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में करवाई गई सैनिक कार्रवाई के विरोध में कर दी थी।

भारत सरकार की ऑफिशियल रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में इन दंगों में कुल 2800 लोगों की मौत हुई थी। जिनमें से 2100 मौतें केवल दिल्ली में हुई थीं। CBI जांच के दौरान सरकार के कुछ कर्मचारियों का हाथ भी 1984 में भड़के इन दंगों में सामने आया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।