पढ़िये 23 मार्च 1931 का काला सच

23  मार्च 1931; भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने वाले क्रन्तिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत का दिन है। इसी दिन भगत, राजगुरु और सुखदेव को गुपचुप तरीके से जेल नियमों को दरकिनार करते हुए शाम 7:33 मिनिट पर लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई और अधजले शवों को सतलुज नदी में फेंक दिया गया। फांसी के वक्त इन तीनो क्रान्तिकारियो की उम्र लगभग मात्र 23 वर्ष थी। जिस उम्र में हम लोग अपने निजी जीवन की उलझनों में लगे रहते हैं इन्होंने दॆश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। इन तीनो के देश के लिए योगदान को हम कभी भुला नहीं सकते।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ये तीनो क्रन्तिकारी ` हिंदुत्स्थान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसियन ` के सदस्य थे। 1928 में साइमन कमीशन के विरोध  दौरान सांडर्स  ने लाला लाजपतराय की हत्या कर दी जिसके प्रतिकार स्वरुप इन्होंने मिलकर सांडर्स की भी गोली मारकर हत्या कर दी और फरार हो गए।
असेम्बली बम कांड (1929 ) 

अंग्रेजों तक अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाई गई जिसमे बटुकेश्वर दत्त और भगत  का नाम तय हुआ।  भगत सिंह अकारण खून खराबे के पक्षधर नहीं थे इसलिए असेम्बली में ऐसी जगह बम फेंक गया जहाँ कोई नहीं था।  इंकलाब ज़िंदाबाद , साम्रज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगते हुए  दोनों ने जानबूझ कर गिरफ्तारी  दे दी। सांडर्स हत्या और असेम्बली बम काण्ड के कारण इन सभी पर मुकदमें चले और फांसी तय की गई।  23 मार्च 1931 को इन्हें फांसी दे दी गई।  
देश आज भी उनकी शहादत को शत शत कोटि प्रणाम करता है।