सबरीमाला मंदिर के कपाट खुले, 10 महिलाओं को पुलिस ने दर्शन से रोका

मंडला पूजा के लिए शनिवार शाम पांच बजे सबरीमाला मंदिर के कपाट खोल दी गए है। पिछली बार छावनी में तब्दील रहे सबरीमाला मंदिर में इस बार शांति है। हालांकि 10 महिलाओं को शनिवार को केरल पुलिस ने सबरीमाला मंदिर में अंदर जाने से रोक दिया है। जिन महिलाओं को सबरीमाला मंदिर के अंदर जाने से रोका गया है, वो तीनों आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से आई थीं और श्रद्धालुओं के पहले जत्थे का हिस्सा थीं। केरल पुलिस ने पंबा बेस कैम्प में पहचान पत्र देखने के बाद इन महिलाओं को रोक दिया। सूत्रों के मुताबिक पुलिस को शक था कि तीनों महिलाओं की उम्र 10-50 साल के बीच है, जिसके चलते उनको श्रद्धालुओं के जत्थे से अलग कर दिया गया। सूत्रों का कहना है कि जब तीनों महिलाओं को मंदिर की परंपरा के बारे में बताया गया, तो वो वापस जाने को राजी हो गईं। वहीं, जत्थे में शामिल बाकी लोग आगे बढ़ गए।

केरल के पर्यटन और देवस्वोम मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने कहा कि सबरीमाला पूजा का स्थान है न कि प्रदर्शन का। यहां पर तृप्ति देसाई जैसी कार्यकर्ताओं के लिए अपनी ताकत दिखाने के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए राज्य सरकार मंदिर में ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रवेश का समर्थन नहीं करेगी जो वहां सिर्फ लोकप्रियता के मकसद से आया है।

केरल सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि सबरीमाला मंदिर के दर्शन करने की बात कहने वाली महिला सामाजिक कार्यकर्ता को पुलिस सुरक्षा नहीं दी जाएगी। मंत्री के। सुरेंद्रन ने कहा था कि हम उन्हें अंदर नहीं ले जाएंगे। वे कोर्ट का आदेश लेकर आएं।

बता दे, सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटा दिया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला पर 28 सितंबर 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई, जिसको 7 न्यायमूर्तियों की बड़ी बेंच को भेज दिया गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अगले फैसले तक सबरीमाला में सभी उम्र की महिलाओं का प्रवेश जारी रहेगा। वहीं, सबरीमाला मंदिर की परंपरा के अनुसार 10 से 50 साल के बीच की उम्र की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने गुरुवार को सबरीमाला पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले में कानूनी सलाह लेने का निर्णय लिया था। विजयन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट जो कहेगा सरकार उसे लागू करेगी। हम समझते हैं कि 28 सितंबर 2018 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी भी लागू है, लेकिन इस फैसले का निहितार्थ स्पष्ट नहीं हैं। हमें विशेषज्ञ की राय लेनी होगी। इसके लिए हमें और समय की आवश्यकता होगी।