केरल में रेबीज का इंजेक्शन लगवाने के बाद भी तीन बच्चों की मौत

तिरुवनंतपुरम, 5 मई — केरल में रेबीज वैक्सीन लेने के बावजूद तीन बच्चों की मौत ने राज्य में वैक्सीन की गुणवत्ता और पशु काटने के बाद की चिकित्सा प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन घटनाओं ने जनता में चिंता बढ़ा दी है और स्वास्थ्य विभाग की जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है।

ताजा मामला सात वर्षीय निया फैसल का है, जिसकी मौत सोमवार को तिरुवनंतपुरम स्थित एसएटी अस्पताल में हो गई। बताया गया कि उसे पहले ही तीन डोज़ एंटी-रेबीज वैक्सीन दी जा चुकी थीं। इससे पहले 9 अप्रैल को पथानमथिट्टा जिले की 12 वर्षीय लड़की और 29 अप्रैल को एक 5 वर्षीय बच्ची की भी रेबीज से मौत हो चुकी है, जबकि दोनों को वैक्सीन दी गई थी।

स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सभी सरकारी अस्पतालों में केवल उन्हीं वैक्सीन्स का इस्तेमाल होता है, जो हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी से गुणवत्ता परीक्षण पास करती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 2022 में सरकार ने वैक्सीन की प्रभावशीलता जांचने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी, जिसके अनुसार सभी टीकाकृत लोगों में आवश्यक एंटीबॉडी पाए गए।

मंत्री ने कहा, जब काटने का घाव सिर या हाथ जैसे तंत्रिका-समृद्ध हिस्सों में होता है, तो वायरस के नसों तक पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में घाव को तुरंत साबुन और पानी से धोना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो टीकाकरण के बावजूद वायरस असर कर सकता है।

विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने स्वास्थ्य विभाग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, पिछले पांच सालों में 102 लोगों की रेबीज से मौत हुई है, जिनमें से 20 को वैक्सीन दी गई थी। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार की कीमत मासूम बच्चे चुका रहे हैं।

सांख्यिकी चिंताजनक

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 1,69,906 लोगों को एंटी-रेबीज वैक्सीन दी जा चुकी है। 2025 में अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 2024 में 22 पुष्ट और 4 संदिग्ध मौतें हुई थीं। 2023 में यह संख्या 17 पुष्ट और 8 संदिग्ध थी।

वैश्विक शोध ने भी जताई चिंता

2023 में The Lancet में प्रकाशित एक लेख ने भी भारत में टीकाकरण के बावजूद रेबीज से होने वाली मौतों को लेकर चिंता जताई थी। लेख में कहा गया कि समय पर उचित प्राथमिक उपचार की कमी और घाव की गंभीरता ऐसी मौतों के प्रमुख कारण हैं। एक सर्वे के अनुसार, केवल 38% लोग ही जानवर के काटने के बाद घाव को साबुन और पानी से धोते हैं।

एक अन्य रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बीते पांच सालों में संक्रमित कुत्तों की संख्या दोगुनी हो गई है। 2022 में लिए गए 300 नमूनों में से 56% में रेबीज की पुष्टि हुई थी। वर्षभर में 2 लाख से ज्यादा कुत्तों के काटने के मामले सामने आए थे, जिनमें 21 मौतें दर्ज की गईं।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि राज्य में Pre-Exposure Prophylaxis यानी पहले से रेबीज वैक्सीन की डोज़ देने पर विचार किया जाना चाहिए, जब तक कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण न पाया जाए।