नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका में यह दावा करने के लिए एक व्यक्ति पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है कि बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा ली गई शपथ गलत थी। याचिका में कहा गया कि यह प्रचार पाने का एक तुच्छ प्रयास था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ दिलाए जाने के बाद सदस्यता ली गई है, इसलिए इस तरह की आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह याचिकाकर्ता द्वारा प्रचार करने के लिए जनहित याचिका क्षेत्राधिकार का उपयोग करने का एक तुच्छ प्रयास था। कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि पद की शपथ सही व्यक्ति को दिलाई गई थी। शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ लेने के बाद सदस्यता ली गई है, इसलिए ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं।”
पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। उन्होंने कहा, “हमारा स्पष्ट मानना है कि इस तरह की जनहित याचिकाएं न्यायालय का समय और ध्यान बर्बाद करती हैं। इससे अदालत का ध्यान अधिक गंभीर मामलों से हट जाता है। अब समय आ गया है जब अदालत को ऐसी जनहित याचिकाओं पर जुर्माना लगाना चाहिए।”
पीठ ने कहा, “हम याचिका को 5,00,000 रुपये की लागत के साथ खारिज करते हैं, जिसे याचिकाकर्ता को चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करना होगा।” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि उपरोक्त अवधि के भीतर लागत जमा नहीं की जाती है, तो इसे लखनऊ में कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भू-राजस्व के बकाया के रूप में इकठ्ठा किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट अशोक पांडे द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि वह बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दी गई ‘दोषपूर्ण शपथ’ से व्यथित हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ लेते समय अपने नाम के पहले ‘मैं’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव तथा दादर और नगर हवेली सरकार के प्रतिनिधियों और प्रशासक को शपथ समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था।