नेताजी के आत्मविश्वास और तेज दिमाग का कायल हो गया था हिटलर, सुधारनी पड़ी थी गलती

'आजाद हिन्द फ़ौज (Azad Hind Fauj)' का गठन करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) को अपनी विलक्षण बुद्धि और जोश के लिए जाना जाता था। अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले फ्रीडम फाइटर सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी 1897 को उ़डीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस एक संपन्न परिवार से थे। नेता जी बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में तेज थे और देश की आजादी में अपना योगदान देना चाहते थे। 1921 में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में उतरे सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) को उनके क्रांतिकारी विचारों के चलते देश के युवा वर्ग का व्यापक समर्थन मिला। उन्होंने आजाद हिंद फौज में भर्ती होने वाले नौजवानों को ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'' का ओजपूर्ण नारा दिया। सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) ने आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थायी सरकार बनायी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी थी। यही नहीं, नेताजी दुनिया के शक्तिशाली नेताओं से मिल रहे थे ताकि उनकी मदद से भारत आजाद हो सके।

इसी क्रम में उन्होंने साल 1942 में हिटलर से मुलाकात की थी। नेताजी को एक कमरे में बिठा दिया गया। उस दौरान दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और हिटलर की जान को खतरा था इसलिए वह अपने आस-पास बॉडी डबल रखता था जो बिल्कुल उसी के जैसे लगते थे।

थोड़ी देर बाद नेता जी से मिलने के लिए हिटलर की शक्ल का एक शख्स आया और नेताजी की तरफ हाथ बढ़ाया। नेताजी ने हाथ तो मिला लिया लेकिन मुस्कुराकर बोले- आप हिटलर नहीं हैं मैं उनसे मिलने आया हूं। वह शख्स सकपका गया और वापस चला गया। थोड़ी देर बाद हिटलर जैसा दिखने वाला एक और शख्स नेता जी से मिलने आया। हाथ मिलाने के बाद नेताजी ने उससे भी यही कहा कि वे हिटलर से मिलने आए हैं ना कि उनके बॉडी डबल से।

कुछ ही समय बाद हिटलर आया। नेता जी उसे पहचान गए। नेताजी बोले- मैं सुभाष हूं... भारत से आया हूं... लेकिन हाथ मिलाने से पहले कृपया दस्ताने उतार दें क्योंकि मैं मित्रता के बीच में कोई दीवार नहीं चाहता। नेताजी की आत्मविश्वास से भरी आवाज ने हिटलर को प्रभावित कर दिया। हिटलर ने तुरंत पूछा कि आपने मेरे हमशक्लों को कैसे पहचान लिया। तो नेताजी ने कहा- 'उन दोनों ने अभिवादन के लिए पहले हाथ बढ़ाया जबकि ऐसा मेहमान करते हैं।' नेताजी की बुद्धिमत्ता का हिटलर कायल हो गया। यही नहीं हिटलर ने अपनी आत्मकथा Mein Kampf में कई जगह भारतीयों की आलोचना की थी जिसका नेताजी ने तर्कों के साथ खंडन किया। हिटलर को नेताजी की बात माननी पड़ी थी और उसने अपनी किताब के अगले एडिशन से किताब का वो खंड हटवा दिया था।