नई दिल्ली। ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर सरकार ने शुक्रवार को बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने इसको लेकर एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी के सदस्यों को लेकर थोड़ी देर में नोटिफिकेश जारी किया जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। इस कमेटी का मकसद एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर गौर करेंगी। सूत्रों का यहां तक कहना है कि एक देश, एक चुनाव पर सरकार बिल ला सकती है।
‘एक देश, एक चुनाव’ कमेटी गठन को लेकर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने निशाना साधा है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘एक देश, एक चुनाव पर केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है। अभी इसकी जरूरत नहीं है। पहले बेरोजगारी और महंगाई का निदान होना चाहिए।’
केंद्र सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। चर्चा है कि इस सत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सरकार बिल (One Nation One Election Bill) ला सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को इस मुद्दे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।
मुंबई में विपक्षी गठबंधन इंडिया में हिस्सा लेने पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे से सवाल किया गया कि सरकार स्पेशल सेशन बुला रही है और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल ला सकती है। इस पर उन्होंने कहा, ‘उन्हें लाने दीजिए, लड़ाई जारी रहेगी।” इससे पहले टीएमसी चीफ ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी नेता समय से पहले लोकसभा चुनाव होने की आशंका जता चुके हैं।
मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर कोई कमेटी बनाई हैं। कमेटी में कौन- कौन सदस्य होगा इसका नोटीफ़िकेशन थोड़ी देर में जारी होगा। यह कदम सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद आया है, जिसका एजेंडा गुप्त रखा गया है।
बीते कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की वकालत मजबूती से करते आए हैं। अब इस पर विचार करने के लिए रामनाथ कोविंद को जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय, चुनावी दृष्टिकोण के मेजबान के रूप में सरकार की गंभीरता को प्रदर्शित करता है। नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होंगे।
वहीं वन नेशन, वन इलेक्शन कमेटी के बारे में प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (उद्धव गुट) के अनिल देसाई ने कहा, 'मुझे मीडिया के माध्यम से जानकारी मिल रही है। इस तरह की बातें फैलाना ठीक नहीं है। 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं सरकार को ये देखना चाहिए कि देश के लोग क्या चाहते हैं, उनके मत को भी ध्यान में रखना चाहिए।'
पैसों की बर्बादी से बचनाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। इसके पक्ष में कहा जाता है कि एक देश-एक चुनाव बिल लागू होने से देश में होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी। बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी। पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकाराएक देश- एक चुनाव के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
देश में लोकसभा और विधानसभा एक साथ कब हुएदेश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसके तहत चार बार चुनाव हुए। 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे चेन टूट गई। साल 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए थे।
लॉ कमीशन ने क्या कहा थालॉ कमीशन ने साल 1990 में एक रिपोर्ट में एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था। लॉ कमीशन ने दलीय सुधारों की बात कही थी और नोटा का विकल्प देने के लिए कहा था।
दुनिया के कई देशों में लागू है यह सिस्टमबता दें, दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां एक देश, एक चुनाव का सिस्टम लागू है। जिसमें- स्पेन, हंगरी, जर्मनी, पोलैंड, इंडोनेशिया, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, स्लोवेनिया और अल्बानिया जैसे देश शामिल हैं। इस लिस्ट में हाल में स्वीडन भी शामिल हुआ है।
एक देश-एक चुनाव से क्या हो सकते हैं नुकसान?
केंद्र सरकार भले ही एक देश-एक चुनाव के पक्ष में हो लेकिन इसके विरोध में भी कई मजबूत तर्क गढ़े जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगर ये बिल लागू होता है तो इससे केंद्र में बैठी पार्टी को एकतरफा लाभ हो सकता है। अगर देश में सत्ता में बैठी किसी पार्टी का सकारात्मक माहौल बना हुआ है तो इससे पूरे देश में एक ही पार्टी का शासन हो सकता है, जो खतरनाक होगा।
राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पार्टियों में मतभेद
इसके खिलाफ एक तर्क यह भी बताया जा रहा है कि इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद और ज्यादा बढ़ सकता है। कहा जा रहा है कि एक देश-एक चुनाव से राष्ट्रीय पार्टियों को बड़ा फायदा पहुंच सकता है जबकि छोटे दलों को नुकसान होने की संभावना है।
चुनावी नतीजों में हो सकती देरी
अगर एक देश-एक चुनाव बिल के तहत पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे तो इससे पूरी-पूरी संभावना होगी कि चुनावी नतीजों में देरी हो सकती हैं। चुनावी नतीजों में देरी से यकीनन देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी, जिसका खामियाजा आम लोगों को भी भुगतना पड़ेगा।